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धन्य-चरित्र/119 प्रभु ने अपने पादारविन्दों से पूजा था। जहाँ के घरों के ऊपर स्थापित ध्वजाओं के अग्रभाग पर रही हुई मणिमय घण्टियों का नाद वैदेशिकों को पूछता था की क्या पृथ्वी पर लक्ष्मी से अभिराम इस नगर जैसा दूसरा कोई नगर देखा है? समस्त अतिशयों के पूर से युक्त गुणों के कारण इस प्रकार की उत्प्रेक्षा की गयी
जिस नगरी में श्री हरिवंश के भूषण श्री मुनिसुव्रतस्वामी के चार कल्याणक हुए। अतः इस नगरी को जितनी उपमा दी जाये, वे सभी युक्त ही हैं-ऐसा जानना चाहिए।
__ अठारह वर्गों के रक्षक, न्यायविदों में अग्रणी, मुक्ति महल में जानेवाली अग्र श्रेणी की तरह वहाँ श्रेणिक राजा था। उनकी धवल कीर्ति और रक्त तेज से श्वेत चंदन और लाल केशर से अर्चित की तरह दिशा-वधुएँ शोभित होती थीं। जिस राजा की तलवार से युद्ध क्षेत्र में गज-समूह के छिन्न हुए दाँतों के टुकड़े यश रूपी वृक्ष के अंकुरो की तरह प्रतीत होते थे। जिस राजा ने अभयकुमार नामक अपने पुत्र को मंत्री के पद पर स्थापित किया था। इससे मंत्री पद की श्री सोने में सुहागा की तरह अत्यधिक शोभा का विस्तार करती थी। जिस राजा का मोक्ष से उत्पन्न होनेवाले अक्षय सुख को देनेवाला समर्थ क्षायिक सम्यक्त्व एक अंश से सिद्ध-गुणों के आविर्भाव के तुल्य था। अर्थात् जिन-वचनों में शंका उत्पन्न करनेवाले शंका आदि दोषों से रहित था।
राजा श्रेणिक प्रतिदिन स्वर्ण के 108 यव बनवाकर भक्ति से परिपूर्ण हृदय द्वारा वीर जिनेश्वर के समीप जाकर उन 108 स्वर्णमय यवों के द्वारा स्वस्तिक बनाता था। उसके बाद भक्ति से भरकर नमन और स्तुति करके जिन-वचन रूपी अमृत का पान करता था। जब वीर प्रभु अन्यत्र विहार कर जाते थे, तब जिस ग्राम में प्रभु विराज रहे होते थे, उस गाँव की दिशा की ओर सात-आठ कदम जाकर थोभ वंदन-त्रिकपूर्वक अभिवन्दना करके स्वर्णमय यवों से स्वस्तिक बनाकर नमन और स्तुति करके घर पर आकर फिर भोजन आदि करता था। इस प्रकार की जिन-भक्ति के प्रभाव से जिननाम कर्म बाँधकर वे आनेवाली चौबीसी में श्री पद्मनाभ नामा प्रथम तीर्थंकर होंगे।
उस नगर में मगधाधिपति राजा का अन्यन्त कृपापात्र, याचक-जनों के लिए कल्प-वृक्ष के समान कुसुमपाल नामक श्रेष्ठी रहता था। उस महा-इभ्य श्रेष्ठी के अत्यन्त जीर्ण-शीर्ण वृक्षोंवाला पुष्पों, पत्रों से रहित एक उद्यान था। मार्ग-श्रम से क्लान्त धन्य संध्या के समय उसी जीर्ण उद्यान में रात्रि बिताने के लिए आया। उसी रात्रि में भाग्य की एकमात्र निधि धन्य के आगमन के प्रभाव