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धन्य-चरित्र/143 करनी पड़े, तो भी द्राक्षा के सदृश कही गयी है। भिक्षावृत्ति करते हुए कोई भी कुछ भी दुर्वचन नहीं बोलता है, बल्कि करुणा से कुछ भी सहायता ही करता है। स्वदेश में तो पग-पग पर लोगों के दुर्वचन सुनकर हृदय जलता है। सुविधा होने पर भी, सुरूप होने पर भी निर्धन का अर्थ के बिना कोई मूल्य नहीं होता। जैसे अच्छे अक्षर छपे हुए होने पर भी सुन्दर गोलाकार होने पर भी खोटे सिक्के का जन में कोई मोल नहीं होता।
हे पुत्रों! समयोचित भाषा और व्यापार–क्रियाओं में कुशल भी अगर निर्धन हो, तो श्लाघनीय नहीं होता, जैसे सुन्दर अक्षरोंवाला काव्य अच्छे कण्ठ द्वारा बोले जाने पर भी अर्थशून्य होने पर श्लाघनीय नहीं होता। अतः हमारा देशान्तर जाना ही उचित है।"
इस प्रकार कहकर जीवन निर्वाह के लिए अन्य देश में जाने की इच्छा से सोमश्री तथा कुसुमश्री को अपने पिता के घर भेज दी।
सुभद्रा को भी भरी हुई आँखों से गद्गद् होते हुए कहा–'हे शुभाशया! तुम भी गोभद्र के घर चली जाओ। हमारे दुष्कर्म के उदय की प्रबलता के कारण भाग्य की एकमात्र निधि स्वरूप हमारा धन्य तो कहीं चला गया है। उसके पीछे सम्पदा भी चली गयी है। हम यहाँ रहकर कुटुम्ब का निर्वाह करने में समर्थ नहीं है। अतः देशान्तर जाते हैं। देशान्तर में निर्धन, अनजाने तथा स्थान-भ्रष्ट लोगों को क्या-क्या विपत्ति नहीं आती? तुम तो अत्यन्त सुकोमल, सुखलीला में मग्न रही हो। दुःख आ पड़ने की वार्ता से भी अनभिज्ञ हो। अतः हे वत्से! तुम सुख से भरे हुए पिता के घर में चली जाओ। जब हमारा भाग्यनिधि धन्य से संगम होगा, तब हम तुम्हें बुला लेंगे।"
इस प्रकार श्वसुर के कथनों को सुनकर सुभद्रा ने उनको प्रत्युत्तर देते हुए कहा-'स्वामी! आप जैसे, कुटुम्ब की चिन्ता में निमग्न, सभी के ऊपर सुदृष्टिवाले तथा हमारे ऊपर आयी हुई विपत्ति को देखने में भी असमर्थ कुलवृद्धों द्वारा ऐसा ही कहना उचित है। फिर भी मैं तो शील के संस्कार साथ लेकर पिता के घर से आयी हूँ। विपत्ति के समय भी सतियों, सन्नारियों की गति पति के घर में ही है। नीतिशास्त्र में भी कहा है
नारीणां पितुरावासे नराणां श्वसुरालये।
एकस्थाने यतिनां च वासो न श्रेयसे भवेत् ।। अर्थात् विवाहिता स्त्री का पिता के घर, पुरुषों का ससुराल में तथा यतियों का एक ही स्थान पर आवास कल्याणकारी नहीं होता।
जैसे-जब सम्पूर्ण लक्ष्मी और सुख की प्रचुरता होती है, तो भी स्त्रियों के लिए महोत्सव आदि कारणों को उद्देश्य में रखकर ही पिता के घर में जाना उचित है। बल्कि विपत्ति के समय में तो श्वसुर गृह में ही नारी को रहना चाहिए। यदि आपत्ति के समय में नारी पिता के घर पर जाये, तो पिता के घर में आश्रित भाभी