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धन्य - चरित्र / 141 तरह तथा सभी भय नहीं होते हैं। यह मणि जिसके द्वारा भुजा में धारण की जाती है, उसको कभी भी कुष्ट आदि बड़े रोग जल - समूह पर आश्रित पर्वत को दावानल की तरह पराभूत नहीं करते। इस मणि को जो अपने कण्ठ में धारण करता है, उसका भूत-प्रेतादि सूर्य के उद्योत में अन्धकार की तरह पराभव करने में समर्थ नहीं हो सकते ।
हे स्वामी! यदि मेरे कहे हुए पर विश्वास नहीं हो, तो एक बड़ा थाल मँगवाकर उसमें चावल भरवा कर रखवा दीजिए । "
राजा द्वारा सेवकों से थाल शालिकणों से भरवाकर सभा में रखवा दिया गया। धन्य ने उस थाल पर मणि रखी और राजा से कहा- ' शालिकणों को खानेवाले पक्षियों को छोड़ा जाये ।"
राजाज्ञा से पक्षियों को छोड़ दिया गया। तब द्वीप के प्रति अति चपल सागर की लहरों की तरह वे पक्षी थाल के चारों ओर घूमने लगे, पर उन्होंने थाल का स्पर्श तक नहीं किया।
घड़ी- - मात्र उसके आश्चर्य को देखकर धन्य के आदेश से शालिकणों से भरे हुए थाल के ऊपर से मणि हटा दिये जाने पर रक्षक से त्यक्त वाटिका में वानरों द्वारा फल - समूहों के भक्षण की तरह उन पक्षियों द्वारा वे सभी शालिकण खा लिये गये। तब धन्य ने कहा- 'महाराज ! जैसे इस मणि के द्वारा पक्षियों से कण रक्षित थे, वैसे ही पास में रही हुई मणि वैरी-गद - ईति - भूत- कार्मण आदि भयों से रक्षा करती है, यह निर्णय हुआ ।"
तब राजा यह सुनकर और अद्भुत को प्रत्यक्ष देखकर चमत्कृत चित्तवाला होकर समस्त लोगों के समक्ष मणि के प्रभाव तथा धन्य की परीक्षा की कुशलता का वर्णन करने लगा।
उसके बाद अति रंजित मन द्वारा राजा ने अपने सौभाग्यमंजरी नामकी पुत्री धन्य को दी । विवाह - मिलन का तिलक किया । पुनः शुभ दिन देखकर प्रशस्त मुहूर्त में महोत्सवपूर्वक पुत्री का पाणिग्रहण करवाया । कर - मोचन के समय पाँच - सौ गाँव तथा अश्व - गजेंन्द्रादि दिये ।
तब धन्य ने 'श्वसुर गृह में निवास करना अयुक्त है" - इस प्रकार विचार करके कौशाम्बी के बाहर न अति दूर, न निकट ऐसे क्षेत्र में अपने नाम से धन्यपुर नामक शाखापुर स्थापित किया ।
वहाँ अति सुन्दर बाजार की श्रेणियों से मनोहर, अत्यधिक ऊँचे-ऊँचे जालियों से उपशोभित गवाक्षवाले आवास - समूहों की तेजस्विता देखते ही नजरों को वश में कर लेती थी। ऐसा उपपुर बनाकर अनेक स्वदेशियों और विदेशियों को अच्छे आश्वासनपूर्वक वहाँ निवास करवाया। वे लोग अल्प शुल्क आदि गुणों से पुकारे हुए हृदयवाले होकर 'पहले मैं पहले मैं" इस रूप से हर्षपूर्वक वहाँ निवास करने लगे ।