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धन्य-चरित्र/122 के कथन को सुनकर राजा ने भय से अभय को देखा। उस समय साहस की निधि अभय ने कहा-"स्वामी! सामादि तीन उपाय के असाध्य हो जाने पर चौथा दण्ड करना चाहिए, अन्यथा नहीं। जो कहा है
पुष्पैरपि न योधव्यं किं पुनर्निशितैः शरैः।
युद्धे विजय संदेहः प्रधान पुरुष क्षयः ।। पुष्पों से भी युद्ध नहीं करना चाहिए, तो फिर तीक्ष्ण बाणों की तो बात ही क्या? प्रधान पुरुष का नाश हो जाने पर युद्ध में विजय संदिग्ध होती है।
अतः सामादि चार में से साम तो नहीं करना चाहिए। उसकी उत्सुकता तथा गर्व के लिए अयोग्य होता है। द्वितीय उपाय दान है, पर वह भी अयोग्य है। द्रव्य के दान में सेव्य-सेवक-भाव प्रकट होता है। लोक में "दण्ड दिया" इस प्रकार बोलने पर हमारी मान-हानि होगी। अतः यहाँ चौथा उपाय ही साध्य है। यही करने योग्य है।
हे प्रभो! जैसे वैद्य द्वारा प्रयुक्त सुरसायन से रोग क्षण भर में नष्ट हो जाते है, उसी प्रकार मेरे द्वारा इच्छित प्रदान करनेवाले भेद-उपाय रूपी रसायन को बुद्धि द्वारा प्रयुक्त किये जाने पर दुश्मन रूपी रोग क्षणभर में ही नष्ट हो जायेगा। देखिए, सेवक का बुद्धि कौशल्य! आप सुखपूर्वक विराजें, यहाँ किसी भी प्रकार की चिंता न करें।'
तब अभय ने सूक्ष्म दृष्टि से देखकर शत्रु-सैन्य के निवास-क्षेत्र में गुप्त रीति से मुख्य राजा के तम्बू के पास जहाँ-जहाँ चारों ओर चौदह राजाओं के तम्बू थे, वहाँ-वहाँ स्थान खोदकर पृथ्वी में बहुत सारा द्रव्य स्थापित कर दिया। इसी प्रकार मंत्री-सेनापति-सुभटों आदि के निवास स्थान पर भी यथा-योग्य भूमि में गुप्त रूप से रख दिया। पुनः धूल आदि के द्वारा दिखायी न दे इस प्रकार ढक दिया।
उधर चण्ड प्रद्योत राजा के सैनिकों द्वारा मैना-समूह की तरह राजगृह रूपी सरोवर को चारों ओर से घेर लिया गया। नगर के समीप सैन्य को बैठा हुआ देखकर दैन्य-भाव को प्राप्त नागरिक मीन राशि में स्थित शनिश्चर की तरह उसे नगर का प्रलय काल मानते हुए बैठ गये।
तब सर्व-उपायों में प्रवीण बुद्धिवाले श्रेणिक-नंदन अभय ने छलपूर्वक चण्ड प्रद्योत राजा को गुप्त लेख भेजा। जैसे-“कल्याण हो! श्रीमद् राजगृह नगर से यथास्थान स्थित पूज्यपाद के प्रति सेवक अभय विज्ञप्ति-पत्र रूपी उपहार भेंट करता है। प्रतिदिन शुभचिंतक सेवक का नमस्कार जानना। मेरी एक विज्ञप्ति उपयोगपूर्वक पढ़े। जैसे कि-हे पूज्य! शिवादेवी चेलना देवी की तरह मेरे लिए