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धन्य-चरित्र/127
का ऐसा आराधक आपको ही देखा है। ज्यादा बोलने से कृत्रिमता प्रकट होगी । पर इतना तो कहूँगी कि आप जैसे धर्म-प्रभावकों द्वारा ही श्रीमद् जिनशासन उद्दीप्त है। आज आपके दर्शन से मेरा जन्म व जीवन सफल मानती हूँ। हे धर्मबंधु ! आप चिरकाल तक राज्य व धर्म का पालन करें ! आपकी पर्वतायु हो ! " इस प्रकार कहकर उस दम्भिनी के निवृत्त हो जाने पर धर्मोन्नति की प्रशंसा के श्रवण से तुष्ट हृदयवाले अभय ने उसको कहा - " हे धर्म-भगिनी ! आप आज मेरे घर पर भोजन ग्रहण करें, जिससे मेरा घर व मेरी गृहस्थी सफल हो
जावे।"
इस प्रकार निमन्त्रित करने पर उस दम्भिनी ने कहा "धर्मबंधु ! मैं सांसारिक सम्बन्ध के नाते तो किसी के भी घर पर भोजन के लिए नहीं जाती हूँ, पर धर्म-स् - सम्बन्ध से तो साधर्मिक रीति से जाती हूँ। पर आज मैंने श्री मुनिसुव्रत स्वामी की कल्याणक भूमि का स्पर्श किया है। अतः आज मैं तीर्थोपवासिनी हूँ। आगे किसी दिन भाई के चित्त को प्रसन्न करने के लिए आऊँगी। आपसे मैं कुछ भी दूर नहीं हूँ ।"
ऐसा कहकर अपने उतरे हुए घर में चली गयी। मंत्रीश्वर अभय भी सब कुछ सत्य मानता हुआ । उसके गुण से रंजित हृदयवाला होकर घर आ गया । प्रभात में पुनः परिषद् सहित उसके घर जाकर, उसको सपरिषद् निमंत्रित करके, अपने घर ले जाकर विविध रसोई के भोजन के लिए बहुमानपूर्वक मंत्रियों द्वारा भोजन - मण्डप में बैठायी गयी। मंत्री अभय जिस-जिस रसवती को परोसते थे, तब वह दम्भपूर्वक कल्पनीय - अकल्पनीय, काल - व्यतिक्रांत, भेल - सम्भेलादि दूषणों को पूछने लगी ।
इस प्रकार मंत्री उस पर और ज्यादा गुणराग से रंजित हुआ। अब वह दम्भी विधिपूर्वक भोजन करके उठी । मंत्री द्वारा ताम्बूल दिये जाने पर उसने ग्रहण नहीं किया, बल्कि उसने कहा - "धर्मबधु ! हमें ताम्बूल की शोभा से क्या प्रयोजन? ताम्बूल तो श्री जिनाज्ञा के अविरुद्ध कहा ही गया, पर द्रव्य ताम्बूल तो मैंने छोड़ ही दिया है ।"
तब मंत्री के द्वारा विविध वस्त्राभूषण आदि उपहार में दिये जाने पर वैराग्य भावना का प्रदर्शन करते हुए तथा मंत्री की स्तुति करते हुए अपने स्थान को चली गयी।
पुनः दो दिन बाद मंत्री के घर जाकर उस दम्भिनी ने कहा "हे धर्मबंधु ! आज भगिनी की विज्ञप्ति स्वीकार कीजिए । "
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तब अभय ने कहा - "हे बहन ! सुखपूर्वक कहिए ।"
उसने कहा—''आज भोजन के लिए मेरे द्वारा उतरे हुए घर में अनुग्रह