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धन्य - चरित्र / 126
से पूछता हूँ कि किस गाँव से आपका आगमन हुआ है?"
इस प्रकार अभय के पुनः पूछने पर उसने पुनः अपना दम्भ - विलास प्रकट किया—“हे धर्मबन्धु ! पृथ्वीभूषण नामक नगर के सुभद्र श्रेष्ठी की पुत्री हूँ । बचपन से ही पड़ोस में रहनेवाली महत्तरा के प्रसंग से अर्हत्-धर्म में रुचि और प्रवृत्ति हुई । क्रमशः यौवन प्राप्त होने पर मेरे पिता ने वसुदत्त व्यापारी के पुत्र के साथ मेरा विवाह कर दिया। उसके साथ परिणीता होकर विष- मिश्रित अन्न के तुल्य वैषयिक सुखों को भोगा। इस प्रकार कितना ही काल बीत जाने के बाद पूर्वकृत भोगान्तराय कर्म के उदय से मेरे पति काल - धर्म को प्राप्त हुए । उनके वियोग दुःख से दुःखित मैं कहीं भी सुख प्राप्त नहीं करती थी।
तब जगत माता के तुल्य महत्तरा आर्या ने मुझे प्रतिबोध दिया - पुत्री ! क्यों दुःख करती हो? यह नर - भव तुमने बहुत ही दुर्लभता से प्राप्त किया है, जो कि विषयों की कदर्थना द्वारा कितना तो निष्फल चला गया। अब तो विष - ग्रन्थि के गमन के तुल्य तुम्हारा पति काल-धर्म को प्राप्त हो गया है। अतः जिनमार्ग को जाननेवाली तुम जैसी के द्वारा क्या विषाद करना युक्त है? चित्त स्थिर करके धर्म-प्रवृत्ति करो, जिससे अति दुर्लभतर रूप से प्राप्त मनुष्य - भव रूपी सामग्री सफल होवे। अनादि काल के शत्रु प्रमादादि को छोड़कर एकमात्र धर्म में रति करो।"
इस प्रकार प्रवर्त्तिनी के उपदेश से पति के मरण-शोक को छोड़कर धर्मार्थिनी हो गयी हूँ। उसके बाद एक बार देशना में तीर्थ यात्रा के फल को सुनकर पिता आदि को पूछकर सिद्धाचल तीर्थ को वंदन करती हुई काशी देश में आयी । वहाँ श्री पार्श्व - सुपार्श्व नाम के जिनेश्वरों की कल्याणक - भूमि का स्पर्शन किया। उससे आगे चलते हुए श्रीमद् चन्द्रप्रभु को चन्द्रावती में वंदन किया। वहाँ पर सुना कि इस समय राजगृह नगरी में जैसी धर्मोन्नति है, वैसी कहीं नहीं है। जहाँ परम आर्हती श्री श्रेणिक राजा शुद्ध न्याय -मार्ग रीति से राज्य का पालन करते हैं। उनका पुत्र सकल गुणवानों का अग्रणी, समस्त बुद्धिप्रपंच की एकमात्र निधि, श्रीमद् जिनागमानुसारी, प्रवृत्ति में कुशल, नित्य धर्ममाता की करुणा के पोषण के लिए अमारी - पटह की उद्घोषणा में तत्पर, समस्त जीवाजीवादि भावों को जाननेवाला, बहुत से जीवों के आजीविकादि भयों का हरण करनेवाला, यथार्थ नामी अभय कुमार मंत्री परम श्रद्धा से धर्म की आराधना करता है।
इत्यादि यश - प्रशस्ति को सुनकर हृदय दर्शन के लिए उत्कण्ठित हो गया। भाग्योदय से मनोरथ की पूर्ति भी हो गयी। पर जैसा सुना था, उससे कहीं ज्यादा देखने को मिला। आप धन्य हैं! आप कृतार्थ हैं ! श्री जिनेश्वर मार्ग