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धन्य-चरित्र/123 समान पूज्य है। अतः हित की बात सुनें। भेद-उपाय को जाननेवाले मेरे पिता ने आपके सभी राजाओं को सोने की दीनारें रूपी निधि दी हैं। आपको पशुबंधन की तरह बाँधकर मेरे पिता को समर्पित करेंगे धन के द्वारा वे नृप अपना तर्पण करेंगे। यदि मेरे वचनों पर विश्वास न हो, तो उनके तम्बूओं के पास दीनारें भूमि में दबायी हुई है, उन्हें देखें। हाथ कंगन को आरसी क्या?"
इस लेख को पढ़कर शिवादेवी का प्रिय होने पर भी विश्वास के लिए एक राजा का निवास स्थान खोदा। वहाँ गुप्त रखी हुई दीनारों को देखकर राजा प्रद्योत ने दो चार स्थान पर और देखो फिर दीनात्मा होकर विचार करने लगा-"अहो! अभय की सौहार्द्रता! जो कि मौके पर ही बता दिया। अगर यह नहीं बताया होता, तो मेरी क्या गति होती? अतः यहाँ किसी के भी आगे कहना उचित नहीं है। सभी स्वामी-द्रोही हो गये हैं, अतः मेरा पलायन करना ही उचित
इस प्रकार विचार करके राजा स्वयं ही युद्ध-भूमि से पलायन कर गया। उसे भागते हुए देखकर मन में संदेह धारण करते हुए सभी भागने लगे। चरों द्वारा यह सभी अभय तथा श्रेणिक को बताया गया।
अभय ने पिता से कहा-“हे तात! अब इनके हाथी-घोड़े आदि स्वेच्छा से ग्रहण करें।"
तब श्रेणिक राजा ने भी भागते हुए उसके हस्ती-अश्व आदि ग्रहण कर लिये। परम्परा से देश में बात फैल गयी कि चण्ड प्रद्योत भाग गया। श्रेणिक भूपति ने सर्वस्व लूट लिया।
जब चण्ड प्रद्योत ने त्वरित गति से भागते हुए अपने अंतःपुर में प्रवेश किया, तो दूसरे राजाओं ने कष्ट से और पीठ पीछे से प्राप्त चण्ड प्रद्योत को इस प्रकार कहा-"स्वामी! बिना सोचे-समझे पलायन करने का कारण? अथवा क्या भय उत्पन्न हुआ कि सागर के समान सैन्य-विस्तार होने पर भी आपने कायर की तरह पलायन किया?"
राजाओं तथा वृद्ध सैनिकों द्वारा इस प्रकार पूछे जाने पर चण्ड प्रद्योत ने कहा-"जो रक्षक हैं, वे ही भक्षक बन गये, तो मैं अकेला क्या करता?"
राजा के सैनिकों ने पूछा-"जगत के एकमात्र शरण रूप आपका कौन भक्षक है? यह असम्भव वचन आपके द्वारा कहा हुआ होने पर असत्य तो हो ही नहीं सकता?"
राजा ने कहा-"तुम्ही लोग विश्वासघाती हो।' उन्होंने पूछा-"कैसे?"