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धन्य-चरित्र/46 परीक्षा के लिए धनसार श्रेष्ठी ने व्यापार के लिए सौ-सौ मासा स्वर्ण चारों पुत्रों को दिया। तीनों बड़े भाइयों ने स्वकृत अन्तराय के उदय से तथा मंद भाग्य के योग से सौ मासा स्वर्ण से व्यापार करने में मूल द्रव्य को भी शीघ्र ही गँवा दिया और लज्जित होकर घर पर आ गये।
दूसरे दिन धन्यकुमार वाणिज्य के लिए सौ मासा स्वर्ण लेकर निकला। पाटक द्वार पर आकर उसने शगुन देखे। स्वर्णादि व्यापार के चतुष्पथ की दिशा में शकुन नहीं हुए। इसी प्रकार अन्य व्यापार की दिशा में शकुन खोजने लगा। पर इच्छित अर्थ की सिद्धि करनेवाले शकुन नहीं हुए। तब कितना ही समय बीत जाने के बाद काष्ठ पीठी के चतुष्पथ की ओर अति लाभ करनेवाले शकुन हुए। अतः धन्यकुमार उन शकुनों को नमस्कार करके उसी चतुष्पथ की ओर चला।
इधर उसी नगर में धनप्रिय नामक श्रेष्ठी था। वह कैसा था? दान के नाम से भी त्रास को प्राप्त होता था। किसी के भी दान की बात सुनकर उसे ज्वर चढ़ जाता था। उसकी गाँठ में 66 छासठ करोड़ धन था, पर कृपण आत्माओं में प्रमुख व पुराने, सैकड़ों स्थानों से टूटे-फूटे हुए, दूसरों द्वारा परित्यक्त ऐसे घर में दास की तरह रहता था। अच्छा अन्न कभी नहीं खाता था। जल के व्यय के भय से वह कभी स्नान भी नहीं करता था। वह चीनक-चनक-वल्ल-चवले प्रमुख असार धानों को भी आधा पेट ही खाता था। संख्यातीत धन होते हुए भी तेलयुक्त अन्न को खाते हुए भी अपने पारिवारिक जनों के कवलों को दूर से ही गिनता था। वह ताम्बूल खाने के स्थान पर बबूल की छाल को चबाता था। गृहस्थ होते हुए भी वह प्रायः तपस्वी की तरह कंद-मूल-फल आदि का आहार करता था। हमेशा धन-व्यय का भय लगे रहने से वह कभी देव-भवन में भी नहीं जाता था। कभी भी गीत, नृत्य व संगीत में उसकी मति क्षण–मात्र भी आसक्त नहीं होती थी। तृण व काष्ठ के व्यय से भीरुप्राय वह लंगोटी पहनकर उपशांत तृष्णावाले की तरह वन में भ्रमण करता था और तृण-काष्ठादि का संग्रह करता था। भिक्षा के समय घर के सामने भिक्षुओं को देखकर वह दोनों कपाटों पर भीतर से अर्गला लगा देता था। कभी काक-ताली न्याय से कपाट खोलते ही कोई भिक्षुक आ जाता था, तो उसे अनर्गल रूप से गाली तथा गलहस्त देता था। लेकिन कण भी नहीं देता था।
एक बहुत बड़ा आश्चर्य यह था माँगने पर भी इस प्रकार की पाँच वस्तुओं का प्रदाता भी लोक में अदाता के नाम से विख्यात हुआ, क्योंकि पुण्य के बिना तो यश भी नहीं होता।
इस प्रकार के उससे कभी स्वजनों द्वारा जबरदस्ती से कौड़ी-मात्र भी