________________
धन्य-चरित्र/49 उसके बाद पिता के आज्ञा-पालक पुत्रों द्वारा खाट सहित पिता के शव को शमशान ले जाया गया। उसे उसी प्रकार खाट सहित ही जब चिता में अग्नि संस्कार के लिए रखा जाने लगा, तो श्मशान पालक चाण्डाल ने उस खाट की याचना की। पर उस कृपण के पुत्रों ने देने से इंकार कर दिया। उनका चाण्डाल के साथ झगड़ा हो गया। चाण्डाल ने उन्हें अग्नि संस्कार करने से मना कर
दिया।
___ इस प्रकार कलह होते हुए देखकर स्वजनों ने कृपण के पुत्रों से कहा-"नीच-अन्त्यज जातिवालों के साथ कलह करना श्रेयस नहीं है। चूंकि यहाँ श्मशान में मृतक के ऊपर रहे हुए भव्य वस्त्रादि को चाण्डाल ही ग्रहण करता है, अतः इसे खाट दे दो। तुम लोगों द्वारा पितृ-वचनों के प्रमाण रूप खाट श्मशान तक तो लायी ही गयी है। अतः अब चाण्डाल को दे देनी चाहिए।" पुत्रों ने भी स्वजनों का मान रखते हुए वह खाट चाण्डाल को दे दी।
दाह-संस्कार के बाद चाण्डाल उस खाट को बेचने के लिए उसे चतुष्पथ पर ले गया, पर मृतक की खाट जानकर उसे किसी ने नहीं खरीदा। मर्म से अनभिज्ञ होने के कारण निपुणजन भी मृतक की शय्या रूप उस अशुभ खाट की अमाँगल्यता के भय से उपेक्षा करने लगे।
उसी समय धन्यकुमार भी अपने भाग्य की परीक्षा के लिए वहाँ आया हुआ इधर-उधर देख रहा था। तभी उसने मृतक की पलंग देखी। धन्यकुमार ने अपनी बुद्धि से लेप आदि के द्वारा, राल-संधि आदि अवगुंठन द्वारा, ज्यादा भारी एवं पाये आदि को स्थूल जानकर उस खाट को रत्न–गर्भा मानकर सात मासा सोना देकर उसे खरीद लिया। सेवकों द्वारा ग्रहण करवाकर घर जाकर गुण से उदार उसने पिता आदि को वह खाट दिखायी। तब पिता ने मोह से कुछ भी नहीं पूछा, बल्कि पिता द्वारा आदेश दिये जाने पर बहू उस खाट को उठाकर जल्दी-जल्दी में अन्दर ले जाने लगी, तो सम-विषम मोड़ने से उसके अंगों के विघटन से खाट के पायों से होनेवाली रत्न-वृष्टि ने धन्य के अहोश्री से विश्व को भरने की तरह घर को भर दिया। तब लाखों-करोड़ों के महामूल्यवाले रत्नों की श्रेणियों को देखकर सभी स्वजन धन्यकुमार की स्तुति करने लगे
अहो भाग्यमहो भाग्यम्, अहो बुद्धि विशालता। ___ अहो दक्षत्वं धीरत्वं पुत्रोऽयं कुलदीपकः।।।
अहो भाग्य! अहो भाग्य! अहो बुद्धि की विशालता! अहो इसकी दक्षता! अहो इसकी धीरता! यह पुत्र तो कुल-दीपक है।
इस धन्यकुमार के द्वारा अर्थी-जनों की स्पृहा दान से भरी गयी, द्रव्य