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धन्य-चरित्र/63 तेजमतूरिका राज-भण्डार के योग्य है। उसे लाकर आपको कोष्ठागार भरना चाहिए, जिससे उस धूर्त को सीख मिले।" यह कहकर वह चुगलखोर चला गया।
तब नीतिप्रिय राजा ने विचार किया-"मैने तो जहाज में रहा हुआ सारा माल समस्त व्यापारियों के समुदाय को दे दिया था एवं कहा था कि जिस मूल्य में गाँव में क्रय-विक्रय होता है, वह मूल्य आप मुझे दे देना। उसके आगे तो आप लोगों का जैसा भाग्योदय होगा, वैसा ही लाभ मिलेगा। यही कहकर मैंने माल दिया था। इसके आगे मेरा बोलना अयुक्त होगा। पर महान आश्चर्य तो यह है कि जो अति निपुण, बहु-बहुतर क्रयाणकों के गुण-दोष के परीक्षण में कुशल, विविध देशों में उत्पन्न होनेवाली वस्तुओं की उत्पत्ति के जाननेवाले, क्रय-विक्रय करने में होशियार, परिणत वय वाले अनेक लोग हैं, उनके मध्य में धन्य कितना है? कितनी उसकी वय परिणति है, जो उसने उन परिणत वयवाले सेठों को ठग लिया है। अतः चुगलखोर के वचनों में क्या विश्वास करना? धन्य को ही बुलवाकर सारी बात पूछी जाये।"
तब राजा ने धन्य को बुलाने के लिए अपने सेवकों को भेजा। उन्होंने भी जाकर धनसार से कहा-"आपके पुत्र धन्य को राजा ने बुलाया है।"
तब शंकित होते हुए धनसार ने धन्य को बताया-"तुमको राजा ने बुलाया है।"
धन्य ने कहा-"महान भाग्योदय हुआ है। बहुत अच्छा हुआ, क्योंकि अति-पुण्योदय से ही राज-प्रसंग होता है। कोई-कोई तो राजा से मिलने के लिए अति प्रयत्न करते हैं, लेकिन मुझे तो महाराज ने स्वयं बुलाया है। अतः आपके भाग्योदय से भव्य ही होगा। इसमें कोई भी शंका नही करनी चाहिए।"
यह कहकर वस्त्र-अलंकार से विभूषित होकर सेवक आदि परिजनों से युक्त होकर कुछ अद्भुत उपहार लेकर राजा के पास गया।
जब यह बात धन्य के तीनों अग्रजों को पता चली, तो तीनों फुसफुसाने लगे-"अहो! यह लोकोक्ति सत्य ही साबित हुई
कीटिकासंचितं धान्यं तित्तिरिभक्षयति। ___ अर्थात् कीड़ियों द्वारा संचित धान्य तित्तिरि खाती है।
हमारे अनुज ने माया-पूर्वक काला-सफेद करके इधर – उधर से धन इकट्टा किया, पर आज तो पहले का रहा हुआ भी सारा धन राजा ग्रहण कर लेगा। इसके पाप से हमारा पुराना धन भी चला जायेगा। पिताजी तो आज भी धन्य के गुणों का ही वर्णन करते है।' यह सुनकर मझला भाई बोला