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धन्य-चरित्र/56 समान अदर्शनीय कृप नामक राजा था। वह राजा कुशास्त्र के श्रवण से विभ्रान्त चित्तवाला होने से कभी पाप करने से थकता नहीं था। शिकार आदि हिंसा को करता था। झूठ बोलता था। चोरी, अब्रह्य आदि महापापों को प्रतिदिन करता था। अज मेघ, अश्व मेघ, नर मेघ, गो मेघ आदि यज्ञों को दुर्बुद्धि से प्रेरित होकर पुरोहितों द्वारा अनेक बार करवाता था। बिना उद्विग्न हुए ब्राह्मणों को बहुत सारा स्वर्ण, भूमि, लवण, तिल आदि देता था। गर्वपूर्वक तथा उत्साहपूर्वक सभी पर्यों में स्वर्ण आदि द्रव्यों से गाय आदि की आकृति बनवाकर तिल, गुड़ आदि के साथ देता था, ब्राह्मण कुगुरुओं द्वारा दी गयी वासना से प्रेरित होकर जैन अणगारों को वह दुष्ट बहुत बाधाएँ देता था। अतः जैन मुनियों ने साँपयुक्त घर की तरह साकेतपुर का त्याग कर दिया था।
__ इस प्रकार साकेतपुर की वार्ता सुनकर निमित्तज्ञान में कुशल सोमिल मुनि ने रुद्राचार्य से कहा-“हे स्वामी! अगर आप आदेश करें, तो मैं निमित्त-भाषण-कला के द्वारा साकेतपुर के कुराजा को प्रतिबोधित करूँ।" यह सुनकर गुरु के द्वारा भी उस दुष्ट राजा के प्रतिबोध के लिए आज्ञा दे दी गयी।
करुणा-सागर सोमिल ऋषि साकेतपुर गये। वहाँ राजा के मुख्यमंत्री के घर पर ठहरे। उसी दिन राजा द्वारा कराये गये नये आवास में प्रवेश के लिए ब्राह्मण द्वारा समर्पित लग्न में राजा द्वारा गृह-प्रवेश सामग्री करवायी गयी।
तब निमित्त-ज्ञान में कुशल सोमिल ऋषि ने निमित्त बल से भावी अशुभ के उदय का निर्णय करके सचिव को कहा-“हे मंत्रीश्वर! तुम्हे आज गृह-प्रवेश करते हुए राजा को रोकना होगा। अकाल में विद्युत्-पात का योग होने से बिजली गिरेगी। यह विद्युत-पात आज की रात्रि में ही होगा। इसका निवारण करनेवाला कोई नहीं है, क्योंकि
अवश्यंभाविभावानां प्रतिकारो न विद्यते। अर्थात् अवश्य होनेवाले भावी भावों का कोई प्रतिकार नहीं होता। ___ मैं जो भी कहता हूँ, वह अभिज्ञानपूर्वक कहता हूँ। अतः मेरा कहा हुआ सत्य ही मानो। इसकी सत्यता के विश्वास के लिए एक बात और बताता हूँ कि आज राजा ने रात्रि में मूर्तिमान काल की तरह एक साँप को स्वप्न में देखा हैं। अतः निर्णय करने के बाद तुम्हे जो अच्छा लगे, वैसा ही करो। उसी के अनुसार स्व-हित का आचारण करना।"
इस प्रकार के मुनिवाक्य को सुनकर मंत्री ने मुनि का कहा हुआ सारा वृत्तान्त राजा को बताया। राजा भी वह सब सुनकर विस्मित-चित्त से विचार