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अनुयोगद्वारसूत्रे
प्रसारणं वायः, तन्तूनां वायः- तन्तुवायः, स शिल्पमस्येति तान्तुवायिकः । करणं कारः - पट्टस्य कारः - पट्टकारः, स शिल्पमस्येति - पाट्टकारिकः । उनृत्तम् - उद्वर्त्तनंपिष्टादिना शरीरमल दूरीकरणं, तत् शिल्पमस्येति - औतिकः । वरुण्टः शिल्पमस्येति वारुण्टिकः । वरुण्टः शिल्पविशेषो बोध्यः । एवं मौञ्जकारिक इत्यादयः मयोगा बोध्याः । ‘शिल्पम् ' ( पा. ४/४/५५) इति सूत्रेण ठक् प्रत्यये सिद्धिः । कटुकारिए, छत्तकारिए, वज्झकारिए, पोत्थकारिए, चित्तकारिए, दंतकारिए, लेप्यकारिए, सेलकारिए, कोहिमकारिए) सौनिक, तान्तुवायिक, पाइकारिक, औदवृत्तिक, वारुण्टिक, मौञ्जकारिक, काष्ठकारिक, छात्रकारिक, वाह्यकारिक, पोस्तककारिक चैत्थकारिक, दान्तकारिक, लैप्यकारिक, शैलकारिक, कौहिमकारिक । यहां सर्वत्र " शिल्पम् " इस सूत्र से ठक् प्रत्यय हुआ है। तुन्न जिसका शिल्प है, वह तौनिक दर्जी है। सूत्रों का पसारना इसका नाम 'वाय' है। तंतुओं का वाय जिसका शिल्प है वह तान्तुवायिक- जुलाहा है । करण कारः- करना इसका नोम कार है - पट्ट (वस्त्र) का करना यह जिसका शिल्प है वह पाट्टकारिकजुलाहा - या बढ़ई है । पिष्ठ-पीठी-आदि से शरीर के मल को दूर करना यह जिसका शिल्प है वह औदवृत्तिक- नापित है। वरुण्ट जिसका शिल्प है वह वारुण्टिक है। वरुण्ट यह एक शिल्प विशेष का नाम है । इसी प्रकार मौञ्जकारिक आदि प्रयोगों को भी जानना चाहिये । ( से तं सिनामे ) इस प्रकार यह शिल्प नाम है । (से किं तं सिलोपनामे)
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पोत्थकारिए, चित्तकारिए, दंतकारिए, लेप्पकारिए, सेलकारिए, कोट्टिम का रिए) तौन्निङ, तान्तुवायिष्ठ, पाट्टरिङ, भोवृत्ति, वालिङ, भौंडा२ि४, ४४. भरि, छात्रमरिङ, माहारि४, पौस्तरि४, चैत्यारि४, हांतारिक, लैप्य द्वारिड, शैलअरिङ, ओट्टिभहारिड, सही सर्वत्र 'शिल्पम्' मा सूत्र वडे ठक् ' अत्यय थयेस छे, तुन्न हेतुं शिल्प छे ते तौन्नि भेटते } कुछे, सूत्राने साववु खेतुं नाम 'वाय' छे. तंतुयोनु वाय हेतु शिष्य छे. ते तान्तुषायि४-वयु४२–४ 'करणं कारः' ४२वु' तेनु' नाम 'र' छे. पट्ट तैयार ४२ हेतु शिल्प छे, ते पाट्टारि४-२-छे. पिष्ट- पीडी - वगेरेथी शरीरना મલને દૂર કરવેા આ જેનું શિલ્પ છે તે ઔવ્રુત્તિક-હજામ છે. વરૂણુ જેનુ શિલ્પ છે તે વારૂણિક છે. વરૂણુ એ શિલ્પ વિશેષનુ નામ છે. આ પ્રમાણે भौंक्डारिङ वगेरे प्रयोग विषे पलाएगी सेवु लेहो. (से तं सिप्प - नामे) या प्रभा भा शिपनाम छे, (से किं त खिलोयनामे) हे अह'त !