Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे
अत्रोपसंहरति- 'एगे एवमाहंसु ७' एके एवमाहुः ७ ॥ एके - सप्तमास्तीर्थान्तरीयाः, एवं - पूर्वोक्तप्रकारकं स्वमतमाहुः - स्वाभिप्रायं कथयन्ति ७ || 'एगे पुण एवमाहंसु ८' एके पुनरेवमाहुः ८ || एके अष्टमास्तीर्थान्तरीयाः पुनः - सप्तानां मतं श्रुत्वा एवं - वक्ष्यमाणप्रकारकं स्वमत माहुः कथयन्ति । तद्यथा
'ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ बहूई जोयणाई बहूई जोयणसयाई बहूई जोयणसहस्साई उडुं दूरं उप्पतित्ता एत्थ णं पाओ सूरिए आगासंसि उत्ति से णं इमं दाहिण लोयं तिरियं करे, तिरियं करिता उत्तरद्धलोयं तमेव रातो, से णं इमं उत्तरद्धलोयं तिरियं करेइ, तिरियं करिता दाहिणद्धलोयं तमेव राओ, सेणं इमाई दाहिणुत्तरडलोयाई तिरियं करेइ, तिरियं करिता पुरस्थमाओ लोयंताओ बहूई जोयणाई बहई जोयणसयाई बहूईं जोयणसहहै कि ये सातवें तीर्थान्तरीय के मत से भी यह पृथिवी गोलाकार है सूर्य भी एक ही है एवं वह मण्डलाकार से पृथ्वी में परिभ्रमण करता है इस कथन को समाप्त करते हुवे कहते है कि (एगे एवं माहंस) कोई एक माने सातवें मतावलम्बी तीर्थान्तरीय इस प्रकार से माने पूर्वोक्त प्रकार से अपने मत के अभिप्राय को कहता है । ७ ।
(एगे पुण एव माहंस) कोई एक नोम्नोक्त प्रकार से अपना मत प्रगट करता है- अर्थात् आठवें मतावलम्बी सातों अन्यतीर्थिकों के मत को सुन करके इस वक्ष्यमाण प्रकार से स्वमत को कहते हैं- 'ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ बहूई जोयणाई बहुयाई जोयणसयाई बहई जोयणसहस्साई उडूं दूरं उत्पत्तित्ता एत्थ णं पाओ सूरिए आगासंसि उत्तिट्ठह से णं इमं दाहिण लोयं तिरियं करेइ तिरियं करिता उत्तरद्धलोयं तमेव राओ, से णं इमं उत्तरद्धलोयं तिरियं करेइ, तिरियं करिता दाहिणद्धलोयं तमेव राओ, से णं इमाई दाहिणुत्तरडूછે. કહેવાના ભાવ એ છે કે-આ સાતમા તીર્થાન્તરીયના મતથી પણ આ પૃથ્વી ગાલાકાર છે, અને એક જ સૂર્ય છે, અને તે મંડલાકારથી પૃથ્વીમાં પરિભ્રમણ કરે છે. આ કથનને सभाप्त „रतां हे छे. ( एगे एवमाहंसु ) अ थे! सातमा भतावसम्णी या उपर भगावेस પ્રકારથી પેાતાના મતના અભિપ્રાયને કહે છે. બ્રા
( एगे पुण एवमाहंसु ) धोड खामो तीर्थान्तरीय या नीये म्हेस प्रारथी પેાતાને મત પ્રગટ पुश्तां अड्डे छे डे-(ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ बहूई जोयणाई बहुयाई जोयणसयाई बहुईं जोयणसहस्साई उड्ढ दूरं उत्पत्तित्ता एत्थ णं पाओ सूरिए आगासंसि उत्तिइ से णं इमं दाहिणङ्कं लोयं तिरियं करेइ तिरियं करिता उत्तरद्धलोयं तमेव राओ से णं इमं उत्तरद्वलोयं तिरियं करेइ तिरियं करिता दाहिणद्धलोयं तमेव राओ, से णं इमाई दाहिणुत्तरढलोयाई तिरियं करेइ करिता पुरस्थमाओ लोयंताओ बहुईं जोयणाई बहुयाई जोयणसाई बहुईं जोयणसहस्साई उड्ढ दूरं उत्पत्तित्ता
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧