Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूर्यशसिप्रकाशिका टोका सू० २६ पञ्चमं प्राभृतम्
४९३ अथात्र षोडशपर्यन्ताना ममीपां प्रतिपत्तिसहायभूतानां सहायरूपे जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिप्रसिद्ध संग्राहिके इमे गाथे प्रत्युध्रियेते-यथा-'मंदरमेरुमनोरमसुदंसणसयंपभे य गिरिराया । रयणोच्चए सिलोच्चय मज्झे लोगरसनाभी य ॥१॥ अच्छे य सूरियावत्ते, सूरियावरणे इय । उत्तमे य दिसाई य, वडिंसे इय सोलसे ॥२॥
'एगे पुण एवमाहंसु-ता धरणिकीलंसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहिय त्ति वएज्जा, एगे एवमाहंसु १७' एके पुनरेवमाहुस्तावद् धरणिकीले खलु पर्वते सूर्यस्य लेश्या प्रतिहता आख्याता इति वदेत्, एके एवमाहुः ॥१७॥-एके पुनः सप्तदशस्थानीया एवं वदन्ति यत् धरणिकीले पर्वते-धरण्याः-पृथिव्याः कीलक इव-मध्यवर्ति मापदण्ड इव भूषण रूप जो पर्वत ऐसे अवतंस पर्वत में सूर्य की लेश्या प्रतिहत होती कही है ऐसा स्वशिष्योंको उपदेश करें कोई एक इस प्रकार कहता है ॥१६॥ ___यहां पर इन सोलह पर्यन्तके कि जो सोलह प्रतिपित्तियों में सहाय भूत है उन के नाम को बतानेवाली दो गाथायें जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति नामक प्रसिद्ध शास्त्र में कही है सो यहां पर कही जाती है-जो इस प्रकार से है
मंदरमेरूमनोरम सुदंसणसयंपमे य गिरिराया। रयणोच्चए सिलोच्चय, मज्झे लोगरसनाभी य ॥१॥ अच्छे य सूरियावत्ते, सूरियावरणे इय ।
उत्तमे य दिसाई य, वडिंसेइय सोलसे ॥२॥ ___'एगे पुण एव माहंसु-ता धरणिकीलंसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहियत्ति वएज्जा, एगे एवमासु ॥१०॥ कोई एक इस प्रकार कहता है कि धरणी कील नामके पर्वत के ऊपर सूर्य की लेश्या प्रतिहत होती कही है कोई एक इस प्रकार से कहता है । अर्थात् सत्रहवां तीर्थान्तरीय લેશ્યા પ્રતિહત થતી કહી છે. એ પ્રમાણે પિતાના શિષ્યને ઉપદેશ કરે એ પ્રમાણે કઈ એક મતાવલંબી પોતાને અભિપ્રાય જણાવે છે. ૧૬
અહીંયાં આ સોળ પ્રતિપત્તિમાં સહાય રૂપ થાય તે હેતુથી તેઓના નામો બતાવનારી બે ગાથાઓ જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ નામના શાસ્ત્રમાં કહેલ છે, તે અત્રે બતાવવામાં भाव छ, २॥ प्रमाणे छ,
मंदरमेरुमनोरम सुदंसण सयंपभे य गिरिराया । रयणोच्चए सिलोच्चय, मज्झे लोगस्स नाभी य ॥१॥ अच्छे य सूरियावत्ते, सूरियावरणे इय ।।
उत्तमे य दिसाईय, वडिंसेइ य सोलसे ॥२॥ ___(एगे पुण एवमासु ता धरणिकीलंसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहयत्ति वरज्जा, एगे एवमाहंसु) १७ 35 से 20 प्रमाणे ४ छ । ५२७॥8 नामना पतनी ५२ सूर्यनी લેશ્યા પ્રતિહત થાય છે. કેઈ એક એ પ્રમાણે કહે છે. અર્થાત્ સત્તરમો અન્ય મતાવલંબી
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧