Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ३१ नवमं प्राभृतम्
६२५ एतेन-अनन्तरोदितेन अभिलापेन सूर्यपाठगमेन नेतव्यं-सर्वत्र यथावत् पाठक्रम संयोज्य ज्ञातव्यम् अर्थात् या एव ओजः संस्थितौ पञ्चविंशतिः प्रतिपत्तयः प्रज्ञप्तास्सन्ति ता एव प्रतिपत्तय स्तेनैव क्रमेण अत्रापि नेतव्याः, क्रमालापकास्तावन्नेतव्याः यावच्चरमप्रतिपत्तिप्रतिपादकमिदं सूत्रम् (एगे पुण एक्माहंसु-ता अणुओसपिणी उस्सप्पिणीमेव सूरिए) इत्यादि, मध्यमा स्त्वालापका एवं ज्ञातव्याः 'एगे एश्मासु-एगे पुण एवमाहंमु' इत्यादिकं सर्वत्र योज्यम् , उतश्च मूलसूत्रे-'ता जाओ चेव ओयसंठिइए पणुवीसं पडिवत्तिो ताओ चेव णेयव्वागो जाब अणुउस्तप्पिणीमेव सूरिए पोरिसीए छायं णिवत्तेइ आहियात्ति वएज्जा, एगे एवमासु तावत यावच्चैव ओजः संस्थितौ पञ्चविंशतिः प्रतिपत्तय स्तावच्चैव नेतव्याः यावदनु उत्सर्पिणीमेव सूर्यः पारुषी छायां निवर्तयति आख्यात इति वदेत् , एके एवमाहुः ॥ लेवें । अर्थात् प्रकाश की संस्थिति के विषय में पहले जो पचीस प्रतिपत्तियां कही गई है वे सभी प्रतिपत्तियां उसी क्रम से यहां पर भी कह लेवें। इनके क्रम का आलापक उसी प्रकार का है पचीसवीं जो अन्तिम प्रतिपत्ति है उसको प्रतिपादन करने वाला सूत्रपाठ इस प्रकार से हैं-(एगे पुण एवमाहंसु-ता अणुओसप्पिणी उस्सप्पिणीमेव सारिए) इत्यादि मध्य के आलापक इस प्रकार से कहना (एगे एवमाहंसु-एगे पुण एवमासु) इत्यादि प्रकार से सर्वत्र कहें, मूलसूत्र में इस प्रकार से कहा है-(ता जाओ चेव ओयसंठिइए पणवीसं पडिवत्तिओ ताओ चेव णेयवाओ जाव अणुउस्सप्पिणीमेव सूरिए पोरिसिए छायं णिवत्तेइ आहियात्ति वएजा एगे एवमाहंसु) जो ओजस संस्थिति माने प्रकाश संस्थिति के विषय में पचीस प्रतिपत्तियां यावत् अनुउत्सपि पर्यन्त सूर्य पौरुषी छाया को निवर्तित करता है ऐसा स्वशिष्यों को कहे कोई एक એટલે કે સૂર્યના સૂત્રપાઠ રૂપ ગમકથી બધે જ યથાવત્ પાઠને ક્રમ બનાવીને સમજી લેવું, અર્થાત્ પ્રકાશની સંસ્થિતિના વિષયમાં પહેલાં જે પચીસ પ્રતિપત્તિ કહેવામાં આવી ગઈ છે, તે તમામ પ્રતિપત્તિ એજ પ્રમાણેના કમથી અહીંયાં પણ કહી લેવી. તેના કમને આલાપક પ્રકાર એજ પ્રમાણે છે. પચીસમી પ્રતિપત્તિનું પ્રતિપાદન કરવાવાળે सूत्र५४ २॥ प्रमाणे -(एगे पुण एवमासु-तः अणु ओसप्पिगी उस्लप्पिणो मेष सूरिए) त्या भयनी माता५४ २मा प्रमाणे हे। (एरो एवमासु-एगे पुण एवम हंसु। त्यादि ५४२थी १५४ मादापमा ४ी से, भूससूत्रमा ! प्रमाणे ५.४ ४ी छे.- ता जाओ चेव ओयसंठिइए पगवीसं पडिबत्तिओ ताओ चेव णेयव्याओ जाध अणु उस्सप्पिणी मेव सूरिए पारिसीए छायं णिवत्तेइ, आहियानि तपना पगे एणमासु सास स्थितिना विषयमा એટલે કે પ્રકાશની સંસ્થિતિના સંબંધમાં પચીસ પ્રતિપત્તિ કહલ છે એ બધી જ અહીંયાં પણ કહી લેવી એ પ્રતિપત્તિ યાવત્ અનુત્સર્પિણી પર્યત સૂર્ય પૌરૂરી છાયાને નિવર્તિત કરે છે એમ સ્વશિષ્યને કહેવું. કોઈ એક આ પ્રમાણે પિતાને મત જણાવે છે,
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧