Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1041
________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ४९ दशमप्राभृतस्य पञ्चदश प्राभृतप्राभृतम् १०२९ पञ्चदशेऽस्मिन्नर्थाधिकारसूत्रे तिथिप्ररूपणा कर्तव्येति तद्विषयं प्रश्नसूत्रमाह-'ता कह ते' इत्यादिना । 'ता कहं ते तिही आहिएति वए जा' तावत् कथं ते तिथय आख्याता इति वदेत् । तावत्-तिथिविषयकः प्रश्नः श्रोतव्यः तावत् कथं-केन प्रकारेण केन क्रमेण तिथयः-प्रतिपक्षस्य पञ्चदश पञ्चदश तिथय आख्याताः-प्रतिपादिता इति वदेत्-कृपया कथय भगवनिति गौतमस्य प्रश्नः ननु दिवसेभ्यस्तिथीनां कः प्रतिविशेषः सम्बन्धोऽस्ति येन सम्बन्धेन एताः पृथक पृथक पृच्छयन्ते ? अत्रोच्यते-इह सूर्यनिष्पादिता अहोरात्राः प्रतिपद्यन्ते, तिथयस्तु चन्द्रनिष्पादिता भवन्ति ! तिथिषु च हानिवृद्धिभ्यां विभिन्नता भवति । अतः तत्पार्थक्ये प्रश्नस्यावकाशो दृश्यते, तथाचोक्तमन्यत्रापि-'त रयय मुकुय सिरिसप्पभस्स चंदस्स राइ सुरुगस्स । लोए तिहित्ति निययं भण्णइ वुड्डीएं हाणीएं ॥१॥' त्वं रचय की प्ररूपणा करके अब इस पंद्रहवें प्राभृतप्राभूत के अधिकार से तिथियों की प्ररूपणा करने के उद्देशसे उस विषय सम्बन्धी प्रश्न सूत्र कहते हैं-(ता कहं ते) इत्यादि श्री गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-(ता कहं ते तिही अहिएत्ति वएज्जा) हे भगवन् अब तिथि के विषय में प्रश्न करता हूं की किस प्रकार से एवं किस क्रम से प्रत्येक पक्ष की पंद्रह पंद्रह तिथियां कही गई है ? वह कृपया आप कहिये शंका-दिवस से तिथियों का क्या विशेष सम्बन्ध है कि जिससे वे भिन्न भिन्न होती है ? उत्तर-अहोरात्र सूर्य निष्पादित होते हैं एवं तिथियां चंद्र निष्पादित होती हैं, तिथियों में हानि एवं वृद्धि से विभिन्नता होती है, अतः इस पृथक्ता से इस प्रश्न का सम्भव रहता है, अन्यत्र भी कहा है तं रयय मुकुय सिरिसप्पभस्स चंदस्स राई सुरूगस्स। लोए तिहित्ति निययं भण्णइ वुडीएं हाणीएं ॥१॥ કરીને હવે આ પંદરમા પ્રાભૃતપ્રાભૃતના અર્થાધિકારથી તિથિની પ્રરૂપણ કરવા માટે એ विषय सधी प्रश्नसूत्र वामां आवे छे-(ता कहं ते) त्यादि. __ श्री गौतमस्वामी प्रश्न पूछे छे-(ता कहं ते तिही आहिएत्ति वएज्जा) मावान ! હવે તિથિના સંબંધમાં પ્રશ્ન પૂછું છું કે-કઈ રીતે અને કયા કમથી દરેક પક્ષની પંદર પંદર તિથિ કહેલ છે? તે આપ કૃપા કરીને મને કહો. શંકા-દિવસ અને તિથિને શું વિશેષ સંબંધ છે? કે જેથી તે અલગ અલગ કહેવાય છે? ઉત્તર-અહોરાત્ર સૂર્યથી નિષ્પાદિત હોય છે અને તિથિ ચંદ્ર નિષ્પાદિત હોય છે. તિથિમાં હાનિ અને વૃદ્ધિથી વિભિન્નતા હોય છે, તેથી આ જુદાપણાથી આ પ્રશ્નને સંભવ રહે છે. અન્યત્ર કહ્યું પણ છે तं रयय मुकुय सिरिसप्पभस्स चंदस्स राई सुरूगस्स । लोए तिहित्ति निययं भण्णइवुढिएं हाणीएं ।। १ ।। શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧

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