Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 824
________________ ८१२ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे दिभिः नक्षत्रैः श्राविष्ठ्याः पौर्णमास्या योजनाऽस्ति तेन श्राविष्ठी पौर्णमासीं कुलं वा युनक्ति उपकुलं वायुनक्ति कुलोपकुलं वा युनक्ति इत्येवं वक्तव्यं स्यात्-इत्थं स्वशिष्येभ्यः प्रतिपादनं कुर्यादित्यर्थः । यदि वा कुलेन वा युक्ता सती श्राविष्ठी पौर्णमासी उपकुलेन वा युक्ता सती श्राविष्ठी पौर्णमासी यदि वा कुलोपकुलेन वा युक्ता सती श्राविष्ठी पौर्णमासीति सर्वत्र युक्तेति वक्तव्यं स्यात् - युक्ता नामिका पौर्णमासी वक्तव्येति स्वशिष्येभ्यः प्रतिपादयेदित्यर्थः । उक्तं च मूलसूत्रे - 'कुलेण वा उवकुलेण वा कुलोवकुलेण वा जुत्ता साविट्ठी पुणिमा जुत्तात वत्तं सिया' कुलेन वा उपकुलेन वा कुलोपकुलेन वा युक्ता श्राविष्ठी पूर्णिमा युक्ता इति वक्तव्यं स्यात् ॥ कुलम् उपकुलं कुलोपकुलं चेति संज्ञात्रयविशिष्टेषु नक्षत्रेषु केनापि नक्षत्रेण सह वर्त्तमाना श्राविष्ठी पौर्णमासी युक्ता - युक्तानामिका स्यात् युक्ता नामिका पौर्णमासी भवतीति स्वशिष्येभ्यः प्रतिपादनं कुर्यात् इत्थमेव सर्वत्रार्थयोजनकार्या । अथ पुनर्गोतमः पृच्छति - 'ता पोहवतिष्णं पुष्णिमं किं कुलं जोएइ किं उबकुलं जोएइ किं कुलोवकुलं वा जोएइ' तावत् प्रोष्ठपदी पूर्णिमां किं कुलं युनक्ति किम् उपकुलं युनक्ति किं संज्ञक उपकुलसंज्ञक एवं कुलोपकुलसंज्ञक नक्षत्रों का योग करती है इस प्रकार स्वशिष्यों को कहें। कुलसंज्ञक नक्षत्र से युक्त भी श्रविष्ठी पूर्णिमा होती है, उपकुलसंज्ञकनक्षत्र से युक्त भी श्रविष्ठी पूर्णिमा होती है एवं कुलोपकुल संज्ञक नक्षत्र से भी श्रविष्ठी पूर्णिमा युक्त होती है । इस प्रकार सर्वत्र युक्ता इस प्रकार के नाम से स्व शिष्यों को कहे। सूत्र में कहा भी है(कुलेण वा उवकुलेण वा कुलोवकुलेण वा जुत्ता पुण्णिमा जुत्तत्तिवत्तवं सिया) कुल संज्ञक, उपकुलसंज्ञक, एवं कुलोपकुल संज्ञक इस प्रकार तीनों संज्ञावाले नक्षत्रों में कोई भी नक्षत्र के साथ रही हुई श्रविष्ठी पूर्णिमा युक्ता नामवाली होती है इस प्रकार स्वशिष्यों को प्रतिपादन करके कहे । इस प्रकार सर्वत्र अर्थ योजना कर लेवें । फिर से श्रीगौतमस्वामी पूछते हैं - (ता पोट्ठवइण्णं पुण्णमं कि कुलं जोएइ किं उवकुलं जोएइ किं कुलोवकुल जोएइ) प्रौष्ठपदी माने भाद्रશ્રાવિષ્ઠિ પૂર્ણિમા કુલસ ંજ્ઞક ઉપકુલસંજ્ઞક અને કુલેપકુલ સંજ્ઞક નક્ષત્રને યાગ કરે છે. તે પ્રમાણે સ્વશિષ્યાને કહેવુ કુલ સંજ્ઞાવાળા નક્ષત્રના ચેગવાળી પણ શ્રાવિષ્ઠી પુનમ હાય છે. ઉસ્કુલ સંજ્ઞાવાળા નક્ષત્રના ચેાગવાળી પણ શ્રાવિષ્ઠી પુનમ હાય છે, તથા કુલાકુલ સંજ્ઞાવાળા નક્ષત્રથી પણ શ્રાવિષ્ઠી પુનમ યુક્ત હોય છે. આ રીતે બધે ‘ચુક્તા’ એ प्रमाणे नामथी स्वशिष्याने हे सूत्रमां पशु छे. - 'कुलेण वा उत्रकुलेण वा कुलोवकुलेण वा जुत्ता पुणिमा जुत्तत्ति वत्तम्वंसिया ) स संज्ञ उपसस ने मुझेोपससंज्ञ से रीते ત્રણે સંજ્ઞાવાળા નક્ષત્રામાં કેઈપણુ નક્ષત્રની સાથે રહેલ શ્રાવિષ્ઠી પૂર્ણિ`મા ‘ યુક્તા ’ એ નામવાળી થાય છે, તેમ સ્વ શિષ્યાને પ્રતિપાદન કરીને કહેવું. આ પ્રમાણે બધેજ અની योजना पुरी लेवी. इरीथी श्रीगौतमस्वाभी पूछे छे = (ता पोट्ठवइण्णं पुष्णिमं किं कुल શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008 1009 1010 1011 1012 1013 1014 1015 1016 1017 1018 1019 1020 1021 1022 1023 1024 1025 1026 1027 1028 1029 1030 1031 1032 1033 1034 1035 1036 1037 1038 1039 1040 1041 1042 1043 1044 1045 1046 1047 1048 1049 1050 1051 1052 1053 1054 1055 1056 1057 1058 1059 1060 1061 1062 1063 1064 1065 1066 1067 1068 1069 1070 1071 1072 1073 1074 1075 1076