Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 981
________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टोका सू० ४४ दशमप्राभृतस्य दशमं प्राभृतप्राभृतम् चंदमंडले णक्खत्ता इमे, तं जहा-अभिई सवणो धणिट्ठा सयभिसया पुन्वभवया उत्तरभदवया रेवई अस्सिणी भरणी पुव्वफग्गुणी उत्तरफग्गुणी साई' अथ यानि सप्त नक्षत्राणि त्रिषु प्रकारेषु योगं युञ्जन्ति, तत्र केचित् अष्टौनक्षत्राणि कथयन्ति, तथाचोक्तं लोकश्रियाम् 'पुणव्वसु रोहिणी चित्ता महजे?णुराह कत्तिय विसाहा। चंदस्स उभययोगीति' परमेतत् वक्ष्यमाणज्येष्ठासूत्रेण सह विरोधीति न युक्ति युक्तमिति। सर्वमेतत् परिभावनीयमिति । तदेवं मण्डलगत्या परिभ्रमरूपाश्चन्द्रमार्गा प्रतिपादिताः ॥ सू० ४४ ॥ मूलम्-ता कइ ते चंदमंडला पण्णत्ता !, ता पण्णरस चंदमंडला पण्णता, ता एएसि णं पण्णरसण्हं वेदमंडलाणं अस्थि चंदमंडला जे णं सया णक्खत्तेहिं विरहिया, अस्थि चंदमंडला जे णं रविससिणक्खताणं सामण्णा भवंति, अस्थि चंदमंडला जे णं सया आदिच्चेहि विरहिया ता एएसि णं पण्णरसण्हं चंदमंडलाणं कयरे चंदमंडला जे णं सया णक्खत्तेहिं अविरहिया, जाव कयरे चंदमंडला जे णं सया आइच्चविरहिया, ता एएसि णं पण्णरसण्हं चंदमंडलाणं तस्थ जे ते चंदमंडला जे णं सया णक्खत्तेहिं अविरहिया, ते णं अट्र तं जहा-पढमे चंदमंडले तईए चंदमंडले छट्टे चंदमंडले सत्तमे चंदमंडले तं जहा-अभीई सवणो धणिट्ठा सयभिसया पुव्वभद्दवया उत्तरभद्दवया रेवई अस्सिणी भरणी पुवफग्गुणी उत्तरफग्गुणी साई) तथा जो सात नक्षत्र तीनों प्रकार से योग करते हैं उन में कोई आठ नक्षत्र कहते हैं, लोकनिश्रा में कहा भी है-(पुणव्वसु रोहिणी चित्ता मह जेट्टाणुराह कत्तिय विसाहा चंदस्स उभययोगीत्ति) परंतु यह कथन वक्ष्यमाण ज्येष्ठा नक्षत्र के सूत्र के साथ विरुद्ध होता है, अतः यह कथन युक्ति संगत नहीं लगता है, यह सब विचारणीय है, इस प्रकार यह मंडलगति से परिभ्रमण रूप चंद्रमार्ग का प्रतिपादन किया है । सू० ४४॥ सवणो, धनिटा सयभिसया, पुश्वभवया उत्तरभदवया, रेवई अस्सिणी भरणी पुवफग्गुणी उत्तरफग्गुणी, साई) तथा सात नक्षत्रो त्राणे प्रारथी या ४२ छे मामा मा नक्षत्र ४ छ. as निश्राम युं ५५ छ (पुणव्वसु रोहिणी चित्ता महा जेद्वाणुराह कत्तिय विसाहा चंदस्स उभययोगीत्ति) ५२'तु २0 ४थन १क्ष्यमाए ज्येष्ठा नक्षत्रना सूत्रनी साये વિરૂદ્ધ છે. તેથી આ કથન યુક્તિ સંગત જણાતું નથી. આ તમામ વિષય વિચારણીય છે. આ પ્રમાણે આ મંડળ ગતિથી પરિભ્રમણ રૂપ ચંદ્રમાર્ગનું પ્રતિપાદન કરેલ છે. સૂ. ૪૪ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧

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