Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 932
________________ - --- - - - ९२० सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे चरमे दिवसे द्वे पादे चत्वारि अङ्गुलानि पौरुषी भवति । तावदिति पूर्ववत तस्य-विचार्यमाणस्य श्रावणमासस्य खल्विति निश्चितं चरमे दिवसे-अन्तिमे दिवसे चतुरंगुलाधिके द्वे पादे-द्वे पदे पौरुषी भवति-तत्तुल्यं पुरुषप्रमाणं भवतीति । पुनगौतमः प्रश्नयति-'ता वासाणं दोच्चं मासं कइ णक्खत्ता ऐति ?' तावत् वर्षाणां द्वितीयं मासं कतिनक्षत्राणि नयन्ति ? । तावदिति प्राग्वत् वर्षाणां-वर्षाकालस्य-चतुर्मासप्रमाणस्य समयलक्षणस्य द्वितीयं मासं-भाद्रपदमासलक्षणं कति नक्षत्राणि नयन्ति ? कति संख्यकानि किं नामधेयानि च नक्षत्राणि नयन्ति-तं द्वितीयं भाद्रपदमासं परिसमापयन्तीति गौतमस्य प्रश्नः ततो भगवानुत्तरयति'ता चत्तारि णक्खत्ता णेति तं जहा-धणिहा सयभिसया पुढ्यापुवया उत्तरापुट्ठयया' तावत् चत्वारि नक्षत्राणि नयन्ति तद्यथा धनिष्ठा शतभिषा पूर्वापौष्ठपदा उत्तराप्रोष्ठपदा । तावदिति पूर्ववत् धनिष्ठा शतभिषा पूर्वाग्रौष्ठपदा-पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराप्रौष्ठपदा-उत्तराभाद्रपदेति चत्वारि नक्षत्राणि वर्षाऋतोर्द्वितीयं भाद्रपदलक्षणं मासं नयन्ति-स्वयमस्तं गमनेन अहोरात्रपरिसमापकतया तं मासं परिसमापयन्ति-परिपूर्णत्वं गमयन्तीति भवतः प्रत्युत्तरं पुनः तदेव विस्तृततया विवृणोति-'ता धणिट्ठा चोदस अहोरत्ते णेइ सयभिसया सत्त अहोरत्ते णेइ पुव्वाभद्दपौरुषी होती है। यही विस्तृत रूप से कहते हैं-(तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे दो पादाइं चत्तारि य अंगुलाणि पोरिसो भवइ) विचार्यमाण श्रावण मास के अन्तिम दिवस में दो पाद एवं चार अंगुल की पौरुषी होती है। इतना तुल्य पुरुष प्रमाण होता है। श्री गौतमस्वामी पुनः पूछते हैं-(ता वासाणं दोच्चं मासं कइ णक्वत्ता णति) वर्षाकाल का अर्थात् चातुर्मास प्रमाण समय वाले वर्षाकाल का दूसरा भाद्रपद मास को कितने एवं किस नाम वाले नक्षत्र समाप्त करते हैं? इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्रीभगवान कहते हैं-(ता चत्तारि णक्खत्ता गति तं जहा-धणिट्ठा सयभिसया पुब्ध पुवया उत्तरपुट्टवया) धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वापौष्ठपदा अर्थात् पूर्वाभाद्रपदा एवं उत्तराप्रौष्टपदा माने उत्तराभाद्रपदा ये चार नक्षत्र अपने स्वयं अस्त होकर अहोरात्र को समाप्त करते हुवे मास को समाप्त करता है अर्थात् पूर्ण करता है । फिर से इसको विस्तृत रूप से कहते हैं-(ता धणिट्टा चोदस अहोरत्ते चत्तारि य अंगुलाणि पोरिसा भवइ) विया भान श्रावणमासना छेदसा हिसभा मे पाह અને ચાર આંગળની પૌરૂષી થાય છે. અર્થાત્ આટલું પુરૂષ પ્રમાણ હોય છે. શ્રીગૌતમસ્વામી शथी पूछ छ-(ता वासाणं दोच्चं मासं कइ णक्खत्ता णेति) या२ भास प्रमाणुवाणा વષ કાળના બીજા ભાદરવા માસને કેટલા અને ક્યા નામવાળા નક્ષત્રો સમાપ્ત કરે છે? श्रीगीतभस्वाभाना मा प्रश्न ने सोमणीने श्रीभगवान छ-ता चत्तारि णक्खत्ता गेति तं जहा-धणिट्ठा सयभिसया, पुलपुवया, तरपुटुवया) धनिष्ठा शतामा पूर्वा પ્રૌષ્ઠપદા અર્થાત્ પૂર્વાભાદ્રપદા તથા ઉત્તરાખુંપદા અર્થાત્ ઉત્તરાભાદ્રપદા આ ચાર નક્ષત્ર સ્વયં અસ્ત થઈને અહોરાત્રને સમાપ્ત કરતા માસને પૂર્ણ કરે છે, ફરીથી આ વિસ્તાર શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧

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