Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ३१ नवमं प्राभृतम्
६३१ तथा-'लेस्सं च छायं च पडुच्च उच्चत्तोडेसे' इति, लेश्यां-प्रकाश्यस्य वस्तुनो दूरं दूरतरम् आसन्नतरं परिपतन्तीं छायां च हीनां हीनतराम् अधिकामधिकतरां च छायां परिपतन्तीमभि पश्यन्ति, तथा तथा भवन्तीं प्रतीत्य सूर्यगतस्योच्चत्तस्य तथा तथा विवर्तमानस्य उद्देशो ज्ञातव्यः, अत्रैतदुक्तं भवति-एतानि त्रीण्यपि प्रतिक्षणमन्यथा अन्यथा विवर्तन्ते, तत एकस्य द्वयस्य वा तथा तथा विवर्तमानस्योदेशत उपलम्मात, इतरस्यापि उद्देशतोऽवगमः कर्त्तव्य इति ॥ इत्थं लेश्यास्वरूपमुक्त्वा सम्प्रति पौरुष्या श्छायायाः परिमाणविषये परतीर्थिकप्रतिपत्तिसम्भवं कथयति-तत्थ खलु इमाओ दुवे पडिवत्तिओ पण्णत्ताओ' तत्र खलु इमे द्वे प्रतिपत्ती प्रज्ञप्ते ॥-तत्र-तस्यां पौरुष्या इच्छायायाः परिमाणचिन्तायां-छायापरिमाणज्ञानविषये खलु इमे-चक्ष्यमाणस्वरूपे द्वे प्रतिपत्ती-मतान्तर स्वरूपज्ञापके प्रज्ञप्ते-प्रतिपादिते, तद्यथा-'तत्थेगे एवमाहंसु-ता अस्थि णं से दिवसे जंसि णं तथा (लेस्सं च पडुच्च उच्चत्तोडेसे) प्रकाश्य वस्तु का दूर दृरतर तथा समीपतर प्रतित होती तथा हीन हीनतर अधिक अधिकतर छाया को प्रतित होती दिखती है। उस उस प्रकार से होती हुई छाया को देखकर सूर्य का उच्चत्व का उस उस प्रकार का फैलाव समज लेवें । इस प्रकार छायोद्देश कहा है ।
यहां पर इस प्रकार से समजना चाहिये ये तीनों अवस्था प्रतिक्षण में अन्य अन्य प्रकार से परिवर्तित होती है। अतः एक का या दोनों का उस उस प्रकार से प्रवर्तमान उद्देश की उपलब्धि से इस उद्देश अवगम होता है। । इस प्रकार लेश्या का स्वरूप कह कर के अब पौरुषी छाया के प्रमाण के विषय में परतीर्थिकों की प्रतिपत्ति का संभव कहते हैं-(तत्थ खल इमाओ दुवे पडिवत्तिओ पण्णत्ताओ) उस पौरुषो छाया के परिमाण के विषय में माने छाया के परिमाण ज्ञान विषय में ये वक्ष्याण स्वरूपवाली मतान्तररूप दो प्रतिपत्ती प्रतिपादन की गई है, वे इस प्रकार से हैं (तत्थेगे एवमाहंसु ता पनि हेपाय छ । प्रमाणे छायादेश सभा तथा (लेस्सं च छायं च पडुच्च उच्चत्तोहेसे) अश्य वस्तुनी २ भने रत२ तथा सभीत२ ४ाती तथा हीनत२ अने. अधि: અધિકતર છાયા પડતી દેખાય છે, તે તે પ્રકારે થતી છાયાને જોઈને સૂર્યના તે તે પ્રકારના ઉચ્ચત્વને ફેલાવે સમજી લે, આ પ્રમાણે છાદ્દેિશ સમજ, અહીંયાં આવી રીતે સમજવું જોઈએ આ ત્રણ અવસ્થાએ પ્રતિક્ષણે ભિન્ન ભિન્ન પ્રકારથી પરિવર્તિત થાય છે. તેથી એક અગર બન્નેનું તે તે પ્રકારથી પ્રવર્તમાન ઉદ્દેશની પ્રાપ્તિથી આ ઉદ્દેશનો બોધ થાય છે.
આ પ્રમાણે લેસ્થાનું સ્વરૂપ બતાવીને હવે પૌરૂષી છાયાના પ્રમાણના સંબંધમાં परतीथिनी प्रतिपत्तियोनी संभ सतावे छ.-(तत्थ खलु इमाओ दुवे पडिवत्तिओ पण्णताओ) से पौ३षी छायाना परिभाना सभा मेटले छायाना प्रभावाना ज्ञान થવાના સંબંધમાં આ વક્ષ્યમાણ સ્વરૂપવાળી મતાન્તર રૂપ બે પ્રતિપત્તિનું પ્રતિપાદન
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧