Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० २७ षष्ठं प्राभृतम् एवमाहु स्तावत् अनुसमयमेव सूर्यस्य ओजोऽन्यदुपपद्यते अन्यदपैति, एके एवमाहुः ॥१॥ तत्र-तेषां मतान्तरवादिनां मध्ये-पञ्चविंशतः परतीथिकानां मध्ये, एके-प्रथमाः मतान्तरवादिनः एवम्-अनन्तरोच्यमानप्रकारकं स्वमतमाहुः-कथयन्ति, तावदिति प्रागवत् अनुसमयमेव-प्रतिक्षणमेव सूर्यस्य ओजः-प्रकाशः अन्यत्-भिन्न प्रकारकम् उपपद्यते-प्रतिक्षणविलक्षणस्वरूपं दृश्यते, तथा च अन्यद् भिन्नस्वरूपम् अपैति-विनश्यति अर्थात् प्रतिक्षणं सूर्यस्य ओजः प्राक्तनभिन्नप्रमाणं विनश्यतीति, एवं चान्यदेव-प्राक्तनप्रमाणमेव ओजः उत्पद्यते । प्राकृतत्वा दार्षत्वाद्वा सूत्रे ओजः शब्दस्य 'ओया' इति स्त्रीत्व निर्देशो भवेत् । अनोपसंहार:-एके एवमाहु रिति प्रथमस्याभिप्रायः १ ॥ 'एगे पुण एवमाहंसु-ता-अणुमुहुत्तमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ २, एगे एवमाहंसु २' एके पुनरेवउन पचीस अन्पतीर्थिकों में कोई एक इस प्रकार से कहता है कि-अनुसमय में अर्थात् क्षणक्षण में सूर्य का प्रकाश भिन्न प्रकार का दिखता है तथा भिन्न भिन्न प्रकार से विनाशित होता है। कोई एक इस प्रकार से कहता है ।। कहने का भाव यह है की उन मतान्तरवादियों में कोई एक प्रथम मतावलम्बी आगे कथ्यमान प्रकार से अपना मत प्रदर्शित करता हुवा कहता है कि अनुसमय माने प्रतिक्षण में माने क्षण क्षण में सूर्य का ओज यानी प्रकाश भिन्न प्रकार उत्पन्न होता है अर्थात् प्रतिक्षण में विलक्षण स्वरूपवाला दिखता है। तथा भिन्न स्वरूप में विनाशित होता है अर्थात् प्रतिक्षण में सूर्य का ओजस पूर्व कथितानुसार भिन्न प्रकार से विनाश को प्राप्त होता है, एवं प्राकथित प्रमाण से ही ओज उत्पन्न होता है । सूत्र में ओजस शब्द को (ओया) इस प्रकार स्त्रीलिङ्ग से निर्दिष्ट किया है सो प्राकृत होने से या आर्षे होने से ऐसा निर्दिष्ट किया है। उपसंहार करते हुवे कहते हैं कि कोई एक पहला मतवादी इस प्रकार से अपना अभिप्राय प्रदर्शित करता है ।। ता अणुसमयमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जे अण्णा अवेइ, एगे एवमाहंसु) १ मे पास મતવાદીયોમાં કેઇ એક એવી રીતે કહે છે કે–અનુસમયમાં સૂર્યને પ્રકાશ જુદા પ્રકારને દેખાય છે. તથા ભિન્ન પ્રકારથી નાશ પામે છે, કોઈ એક એ રીતે પિતાને મત કહે છે. કહેવાને ભાવ એ છે કે-એ બધા મતાન્તરવાદીઓમાં કોઈ એક પહેલે મતાવલબી વક્ષ્યમાણ પ્રકારથી પિતાને મત દર્શાવતાં કહે છે કે-અનુસમય એટલે કે પ્રત્યેક ક્ષણમાં અર્થાત્ ક્ષણ ક્ષણમાં સૂર્યને પ્રકાશ અથર્ ઓજસ ભિન્ન પ્રકારથી ઉત્પન્ન થાય છે, એટલે કે ક્ષણે ક્ષણે વિલક્ષણ પ્રકારનું દેખાય છે, તથા ભિન્ન પ્રકારથી વિનાશિત થાય છે અને प्राथित प्राथी आ४-५४१अस्पन थाय छे. सूत्रमा आ४स शहने (ओया) २मा प्रमाणे સ્ત્રીલિંગપણાથી કહેલ છે. તે પ્રાકૃત હોવાથી અથવા આર્ષ હોવાથી તે પ્રમાણે કહેલ છે. ઉપસંહાર કરતાં કહે છે કે-કઈ એક પહેલે મતવાદી આ પ્રમાણે પોતાનો મત દર્શાવે છે. ૧
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧