Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० २५ चतुर्थ प्राभृतम्
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क्त्तसंठिई पन्नत्ता, एगे एवमाहंसु ६' एके पुनरेव माहुस्तावद् वलभीसंस्थिता तापक्षेत्रसंस्थितिः प्रज्ञप्ता एके एवमाहुः ६ । ' एगे पुण एवमाहंसु ता - हम्मियतलसंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता - एगे एवमाहंसु ७' एके पुनरेवमाहु स्तावद् हर्म्यतलसंस्थिता तापक्षेत्रसंस्थितिः प्रज्ञप्ता, एके एवमाहुः ७ । 'एगे पुण एवमाहंसु - ता वालग्गपोतिया संठिया तावक्रखेत्तसंठिई पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु ८' एके पुनरेव माहु स्तावद् वालाग्रपोतिका संस्थिता तापक्षेत्रसंस्थितिः प्रज्ञप्ता एके एवमाहुः ८ || एतानि सर्वाण्यपि पदानि प्रायो व्याख्यातान्येव पुन रत्र व्याख्यानेनालम् । तेन केवलं छायामात्रलेखनमेव पर्याप्त तावक्खेत संठिई पण्णत्ता एगे एवमाहंसु ५) पांचवां तीर्थान्तरीय कहता है कि प्रेक्षागृह के समान संस्थित तापक्षेत्रसंस्थिति कही है पांचवां मतावलम्बी इस प्रकार से स्वमत का कथन करता है (५)
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( एगे पुण एवमाहंसु ता वलभीसंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता एगेमासु) ६ छठा कोई एक मतान्तरवादी कहता है की वलभी संस्थान संस्थित तापक्षेत्र की संस्थिति कही गई है इस प्रकार छठा मतवादी का मत है (६) ( एगे पुण एवमाहंसु ता हम्मियतलसंठिया तावक्खेत्तसंठिइ पण्णत्ता एंगे एवमाहंसु ७) कोई एक सातवां तीर्थान्तरीय कहता है कि हर्म्यतल के जैसे संस्थान से संस्थित तापक्षेत्र की संस्थिति कही है। सातवां तीर्थान्तरीय इस प्रकार से कहता है (७) (एगे पुण एवमाहंसु-ता वालग्गपोतिया संठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता एगे एवमाहंसु ) ८ कोई एक आठवां तीर्थान्तरीय कहता है कि वालाग्रपोतिका संस्थान से संस्थित तापक्षेत्र की संस्थिति कही है इस प्रकार आठवां मतवादी का अभिप्राय है (८) ये सभी कथन प्रायः पहले व्याख्यात किये ही है अतः यहां पर पुनः कथन नहीं किया है। व्याख्यातपूर्व અન્યમતવાદી કહે છે. કે પ્રેક્ષાગૃહના સંસ્થાનની જેમ તાક્ષેત્રની સ’સ્થિતિ કહેલ छे, पांयभो भतावसम्मी मा प्रमाणे पोताना भतनु उथन रे छे. ( एगे पुण एव - मासु ता वलभीसंठिया तावकखेत्तसंठिई पण्णत्ता) छडो अर्थ मे भतवाही उडे छे ! વલભીના સંસ્થાનની જેમ તાપક્ષેત્રની સસ્થિતિ કહેલ છે. આ પ્રમાણે છટ્ઠા મતવાદીના મત छे. ६ ( एगे पुण एवमाहंसु ता हम्मियतलसंठिया तावकखेत्तसंठिई पण्णत्ता एगे एबमा हंसु ) કોઇ એક સાતમે તીર્થાન્તરીય કહે છે કે હુ તલના જેવા સસ્થાનથી સ`સ્થિત તાપક્ષેત્રની સસ્થિતિ કહેલ છે. સાતમા તીર્થાન્તરીય આ પ્રમાણે પેાતાના મત કહે છે. છા ( एगे पुण एवमाहंसु तो वालग्गपोतियासंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता एगे एवमाहंसु ) કોઈ એક નવમે અન્યમતવાદી કહે છે કે-વાલાગપોતિકાના સસ્થાનથી સસ્થિત તાપક્ષેત્રની સસ્થિતિ કહી છે. આ આઠમા મતવાદીનેા અભિપ્રાય છે. ૧૮ા આ તમામ ક્ચન પ્રાયઃ પહેલાં કહેવાઈ ગયેલ છે. જેથી અહીંયાં ફરીથી વિસ્તૃત કથન કરેલ નથી, વ્યાખ્યાત પૂર્વ
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શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧