Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे मासु १०' एके पुनरेवमाहु स्तावत् लोकनाभौ खलु पर्वते सूर्यस्य लेश्या प्रतिहता आख्याता इति वदेत् , एके एवमाहुः ॥१०॥ एके पुनर्दशमाः स्वोरस्ताडनपूर्वक मेवं प्रजल्पन्ति यत् भवतां केषांचिदपि कथनं न समीचीनं, प्रामाणिकं मम मतं तावत् श्रृयताम्-लोकनाभौतन्नामके पर्वते, लोकस्य तियेग्लोकस्य स्थालप्रख्यस्य नाभिरिव-स्थालमध्यगत समुन्नत वृत्तचन्द्रक इव वर्तते यः स लोकनाभि स्तस्मिन् लोकनाभी खलु पर्वते सूर्यस्य लेश्या प्रतिहता भवतीति स्वशिष्येभ्य उपदिशे दित्युपसंहरति-एके एवमाहुरिति ॥१०॥ 'एगे पुण एवमाहंसु-ता अच्छंसि णं पव्वयंसि मूरियस्स लेस्सा पडिहया आहियत्ति वएजाएगे एवमाहंसु ११' एके पुनरेवमाहु स्तावद् अच्छे खलु पर्वते सूर्यस्य लेश्या प्रतिहता आख्याता इति वदेत्, एके एवमाहुः ११॥-एके पुनरेकादशस्थानीया स्तीर्थान्तरीया एवं माहंसु ता लोगनाभिसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहियत्ति वएज्जा, एगे एवमासु ॥१०। कोई एक इस प्रकार से कहता है कि लोकनाभी नाम के पर्वत में सूर्य की लेश्या प्रतिहत होती कही गई है ऐसा स्वशिष्यों को कहे कोई एक इस प्रकार कहता है। अर्थात् दशवां तीर्थान्तरीय अपना ऊरु को ठोकते हुवे अपना जल्पन करता है की आप कोई का कथन समीचीन नहीं होता है, मेरा ही मत प्रामाणिक है उसको सुनिये-लोकनाभी नाम के पर्वत में माने तिर्यक्लोक का स्थालाकार मध्यगत समुन्नत गोल चन्द्र के समान भाग होता है जिसको लोकनाभि कहते हैं उस लोकनाभि नाम के पर्वत में सूर्य की लेश्या प्रतिहत होती है ऐसा अपने शिष्यों को उपदेश करें कोइ एक इस प्रकार कहता है ।१०। (एगे पुण एवमाहंसु ता अच्छंसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहियत्ति वएज्जा एगे एवमासु।११। कोइ एक कहता है कि अच्छ नाम के पर्वत में सूर्य की लेश्या प्रतिहत होती कही है ऐसा स्वशिष्यों को कहें । कोइ एक इस प्रकार कहता है । अर्थात् ग्यारहवां पडिहया आहियत्ति वएज्जा, एरो एवमाहं सु) 3 2 से प्रभाये डे छ नाली નામના પર્વતમાં સૂર્યની વેશ્યા પ્રતિત થતી કહી છે એ પ્રમાણે શિષ્યોને કહેવું. કઈ એક આ પ્રમાણે કહે છે, અર્થાત્ દસમો તીર્થાન્તરીય પિતાની જાંઘને ઠેકીને પિતાને બડબડાટ કરતા કહે છે કે તમે કોઈને મત સમીચીન નથી મારો મત જ પ્રમાણયુક્ત છે તે તમે સાંભળો લેકનાભી નામના પર્વતમા એટલે કે તિર્યક લોકને સ્થાલાકાર મધ્યને જે સમુન્નતગળ ચન્દ્રના જે ભાગ હોય છે કે જેને લેકનાભી કહે છે, એ લેકનાભી નામના પર્વતમાં સૂર્યની વેશ્યા પ્રતિહત થાય છે, આ પ્રમાણે પિતપતાના શિષ્યોને उपदेश ४श्व अध मे २॥ प्रमाणे ४ छे. १०१ (एगे पुण एवमासु ता अच्छंसि णं पव्वयंसि सूरियस्त लेस्सा पडिहयत्ति वएज्जा एगे एवमाहंसु) १. मे छ ?-१२७ નામના પર્વતમાં સૂર્યની વેશ્યા પ્રતિત થતી કહી છે, એમ સ્વશિષ્યોને કહેવું. કોઈ એક
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧