Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० २५ चतुर्थ प्राभृतम् सूत्रयति भगवान् गौतमः-'ता कहं ते सेयानि संठिई आहिताति वएज्जा' तावत् कथं ते श्वे. ततायाः संस्थिति राख्याता इति वदेत् ॥ तावत्-श्रूयतां भगवन् ! तावत् तृतीयप्राभृते सूर्यचन्द्रयोरवभासनक्षेत्रविषयणी विस्तृतव्याख्यां श्रुत्वा सम्प्रति तावत्-श्वेतताया विषये प्रश्नान् प्रष्टुमीहे-कथं केन प्रकारेण कया वा उपपत्त्या भगवन् ! त्वया श्वेतताया:-प्रकाशस्य-प्रकाशक्षेत्रस्य संस्थिति राख्याता-कथिता-संस्थानमाख्यातमिति भगवान् वदेत्-कथयेत् । एवं बुद्धिविशदशालिना तपस्विना भगवता इन्द्रभूतिना गौतमेन प्रश्ने कृते भगवान् वीतरागो महावीरस्वामी आह-'तत्थ खलु इमा दुविहा संठिई पन्नत्ता' तत्र खलु इयं द्विविधा संस्थितिः प्रज्ञप्ता ॥ तर-३वेतताया विषये खलु-इति निश्चितम् इय-वक्ष्यमाणस्वरूपा द्विविधा-द्विप्रकारका संस्थितिः प्रज्ञप्ता-आख्याता, 'तं जहा'-तद्यथा-तामेव तद्यथेत्यादिना प्रतिपादयति, यतोहि-तद्यथेत्यत्र तच्छब्दोऽव्ययम्" अतोऽयमर्थश्चिन्तनीयः तद्यथा-सा श्वेतता हैं-(ता कहं ते सेयानि संठिई आहिताति वएज्जा) आपके मत से श्वेतता की संस्थिति किस प्रकार से कही है ? सो कहीये अर्थात् गौतमस्वामी प्रश्न करते हवे कहते हैं कि हे भगवन् आपने तीसरे प्राभृत में सूर्य चन्द्र का अवभासन क्षेत्र विषय में विस्तार पूर्वक कथन किया है अतः अब उनकी श्वेतता के विषय में प्रश्न करता हूं कि किस प्रकार से या किस प्रमाण से आपने श्वेतता की माने प्रकाश क्षेत्र की संस्थिति कही है ? अर्थात् श्वेतता का संस्थान किस प्रकार का कहा है सो आप कहिये । इस प्रकार विशद बुद्धिशालि तपस्वी इन्द्रभूति अपर नाम वाले गौतमस्वामी के प्रश्न करने पर वीतराग भगवान् महावीर स्वामी कहते हैं (तत्थ खलु इमा दुविहा संठिई पण्णत्ता) उस श्वतता के विषय में यह आगे कथ्यमान प्रकारवाली दो प्रकार की संस्थिति कही है (तं जहा) तद्यथा, जो इस प्रकार से है-इस श्वतता का प्रतिपादन करते हैं कारण की तद्यथा पद में तत् शब्द अव्ययार्थक है इस से इस प्रकार से इस डाय छ १ मे विषयमा सधमा लगवान्ने श्री गौतमस्वामी प्रश्न पूछे छे-(ता कहं ते सेयानि संठिई आहिताति वएज्जा) सापना भतथी श्वेततानी सस्थिति अरनी કહેલ છે? તે આપ કહો. અર્થાત ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરતાં કહે છે કે હે ભગવન આપે ત્રીજા પ્રાભૂતમાં સૂર્ય ચંદ્રના અવભાસ ક્ષેત્રના વિષયમાં વિસ્તાર પૂર્વકથન કરેલ છે, તેથી હવે તેની શ્વેતતાના સંબંધમાં પ્રશ્ન કરું છું કે કેવા પ્રકારથી કે કેવા પ્રમાણથી આપે
તતાની અર્થાત્ પ્રકાશ ક્ષેત્રની સંસ્થિતિ કહેલ છે ? અર્થાત્ તતાનું સંસ્થાન કેવા પ્રકારનું કહેલ છે? તે આપ કહો આ પ્રમાણે વિશાળ બુદ્ધિવાળા તપસ્વી ઇન્દ્રભૂતિ અ૫૨ नामा॥ गौतमवाभीमे प्रश्न ४२पाथी वातशा भगवान् महावी२०वामी ४ छे, (तत्य खलु इमा दुविहा संठिई पण्णत्ता) 2 वेतताना विषयमा 42 मा ४पामा ना२ से प्रा२नी सस्थिति ही छे, (तं जहा) 2 २॥ प्रभारी छे-से श्वेततानु प्रतिपादन
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧