Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस्ने भायाम् , एको धूमप्रभायाम् , एकोऽधः सप्तम्यां भवति २, 'अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे तमाए एगे अहे सत्तमाए होज्जा ३, अथवा एको रत्नप्रभायाम् यावत् एकः शर्कराप्रभायाम् , एको वालुकाममायाम्, एकः पङ्कपभायाम् , एकस्तमः प्रभायाम् , एकोऽधः सप्तम्यां भवति ३, 'अहवा एगे रयणप्पभाए जाब एगे वालुयप्पभाए एगे धूमप्पभाए जाब एगे अहेसत्तमाए होज्जा ४, अथवा एको रत्नप्रभायां यावत् एकः शर्करामभायां एको वालुकाप्रभायां एको धूमप्रभायां यावत् एकस्तमःप्रभायाम् एकोऽधःसप्तम्यां भवति ४, 'अहवा एगे रय. पप्पमाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा५,' अथवा एको रत्नप्रभायाम् एकः शर्क राप्रभायाम् , एकः पङ्कप्रमायाम् , यावत् एक नारक पंकप्रभा में, एक नारक धूमप्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है २, (अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में, एक नारक वालुका. प्रभा मे एक नारक पंकप्रभा में, एक नारक तमः प्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है ३ (अहवा एगे रयणप्पभाए जाव एगे वालुयप्पभाए एगे धूमप्पभाए जाव एगे अहे सत्तमाए होज्जा ४) अथवा-एक नारक रत्नप्रभा में यावत् एक नारक शर्करामभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में, एक नारक धूमप्रभा में, एक नारक तमः प्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है ५, (अहवा एगे रयगप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, जाव एगे अहे सत्तमाए होज्जा ) अथवा- एक नारक નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક શરામભામાં, એક નારક વાલુકાપ્રભામાં, એક નારક પંકપ્રભામાં, એક નારક ધૂમપ્રભામાં અને એક નારક અધાસપ્તમીમાં Gत्पन्न थाय छे. “ अहवा एगे रयणप्पभाए, जाव एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा' (3) अथवा से ना२४ २त्नमामा, ये शशપ્રભામાં. એક વાલુકાપ્રભામાં, એક પંકપ્રભામાં, એક તમઃપ્રભામાં અને એક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે.
"अहवा एगे रयणप्पभाए, जाव एगे वालयप्पभाए, एगे धूमपभाए जाव एगे अहे सत्तमाए होज्जा" (४) अथवा से ना२४ २त्नप्रभामा, मे शश. પ્રભામાં, એક વાલુકાપ્રભામાં, એક ધૂમપ્રભામાં, એક તમઃ પ્રભામાં અને એક नीय सातभा पृथ्वीमा 6पन्न थाय छे. “ अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरदरभाए, एगे पकप्पभाए, जाव एगे अहे सत्तमाए होज्जा" (५) अथवा से
श्री. भगवती सूत्र : ८