Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 645
________________ D ६३४ भगवतीसूत्रे चचारि पंवनेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवभवग्गहणाई संसारं अणुपरिय. हिता, तो पन्छा सिज्झति, बुझंति, जाव अंतं करेति' हे गौतम ! यावत् एक, द्वे, त्रीणि, चत्वारि, पश्च नैरयिकतिर्यग्योनिकमनुष्यदेवभवग्रहणानि एतावद्रूपं संसारम् अनुपर्यटय-परिश्रभ्य ततः पश्चात् तदनन्तरं सिध्यन्ति, बुध्यन्ते, यावत् मुच्यन्ते. परिनिर्वान्ति, सर्वदुःखानाम् अन्तं कुर्वन्ति । ' अत्थेगइया अणादीयं अगवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंपारकंतारं अणुपरियटृति' अस्त्येकके केचन जीवाः अनादिकम्-आदिरहितम् , अनवदग्रम्-अपर्यवसानम् , दीर्घाध्वानम्निगोदापेक्षया अत्यन्तदूराधानम् , चातुर्गतिकं संसारकान्तारं भवाटवीम् अनुपर्यटन्ति-परिभ्रमन्ति, गौतमः पृच्छति-'जमालीणं भंते ! अणगारे, अरसाहारे, प्रश्नके उत्तरमें प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! जाव चत्तारि पंच नेरइय तिरिक्खजोणियमणुस्सदेवमवग्गहणाइं संसारं अणुपरियत्तिा तओ पच्छा सिझंति, बुझंनि, जाव अंतं करेंति ' हे गौतम ! नैरयिक, तिर्यग्योनिक, मनुष्य और देव इनके ४ चार भवग्रहण करने तक या पांच भवग्रहण करने तक संसार में रहते हैं-इसके बाद वे सिद्ध हो जाते हैं, बुद्ध बन जाते हैं, यावत् मुक्त हो जाते हैं, परिनिर्वातशीतलीभूत-हो जाते हैं एवं सर्व दुःखों का अंत कर देते हैं । ' अत्थेगइथा अणादीयं अणवदग्गं दीए मद्धं चाउरंत संसारकंतारं अणुपरियटुंति' तथा कितनेक जीव ऐसे भी होते हैं जो आदि रहित, अन्तरहित, निगोद की अपेक्षा बहुत विकट मार्गयुक्त ऐसे चातुर्गतिक संसाररूप गहनवन में परिभ्रमण करते रहते हैं । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं महावीर प्रभुने। उत्तर--" गोयमा ! जाव चत्तारि पंच नेरदयतिरिक्स जोणियमणुस्सदेवभवग्गहणाई संसार अणुपरियट्टित्ता तओ पच्छा सिझंति, बुज्झति, जाव अत' करे'ति” गौतम ! तय नयि४, तिय"ययानि, મનુષ્ય અને દેવગતિના ચાર અથવા પાંચ ભવ ગ્રહણ સુધી સંસારમાં ભ્રમણ કરે છે, ત્યાર બાદ તેઓ સિદ્ધ થઈ જાય છે, બુદ્ધ થઈ જાય છે, મુક્ત થઈ જાય છે, પરિનિર્વાત (સમસ્ત શારીરિક અને માનસિક પરિતાપથી રહિત) या लय भने समस्त मान। सथा क्षय जरी ना छे. “ अत्थेगइया अणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंपारकंतार' अणुपरियति " तथा 2લાક કવિષિક દે તે કિવિષિક દેવ પર્યાયમાંથી નીકળીને અનાદિ, અનંત નિગદની અપેક્ષાએ અતિશય વિકટ માગયુક્ત એવા ચાર ગતિવાળા સંસાર રૂપી ગહન વનમાં ભ્રમણ કર્યા કરે છે. श्री. भगवती सूत्र : ८

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