Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 656
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीकाश०९३.३४ सू०१ पुरुषाश्वाविहननतद्वैरबन्धनिरूपणम् ६४५ धनन् पुरुषनपि हन्ति, अथव नोपुरुषानपि पुरुषव्यतिरिक्तान् अन्य जीवानपि हन्ति । गौतमस्तत्र कारणं पृच्छति-' से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ पुरिसं पि हणइ, नो पुरिसेवि हगइ ? ' हे भदन्त ! तत्-अथ केनार्थेन एवमुच्यते पुरुषः खलु पुरुषं ध्वन् पुरुषमपि हन्ति, नो पुरुषानपि हन्ति ? भगवानाह-'गोयमा! तस्स णं एवं भवइ-एवं खलु अहं पुरिसं हणामि, ' हे गौतम ! तस्य खलु एकं पुरुषं धतः पुरुषस्य एवं वक्ष्यमाणरीत्या भवति मनसि ज्ञानं जायते-यत् एवं खलु अहम् एकमेव पुरुषं हन्मि, किन्तु ' से णं एगं पुरिसं हणमाणे अणेगे जीवे उत्तरमें प्रभु कहते हैं-'गोगमा' हे गौतम ! 'पुरिसं पि हणह, नो पुरिसे वि हण' पुरुषका हनन करता हुआ वह प्रथम पुरुष जिसको वह मार रहा है उस पुरुषकी भी हत्या करता है, और उससे भिन्न अन्य नो पुरुषोंकी-जीवोंकी भी हत्या करता है, गौतम इसमें कारण पूछते है, कि 'से केगडेणं भंते ! एवं बुच्चा, पुरिसंपि हणइ, नो पुरिसे वि हणइ ' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारणसे कहते हैं कि पुरुषकी हत्या करता हुआ वह मारक पुरुष उस पुरुषकी भी हत्या करता है, और उसके साथ अन्य जीवों की भी हत्या करता है ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं-' गोयना' हे गौतम ! ' तस्स णं एवं भवह, एवं खलु अहं एगं पुरिसं हणामि' पुरुषकी हत्या करनेवाले उस मारक पुरुषके मनमें ऐसा विचार होता है कि मैं एकही पुरुषको मार रहा हूं, किन्तु ‘से णं एगं पुरिसं हणमाणे अणेगे जीवे हणइ ' एक पुरुषको मारता “गोयमा!" " गौतम! " पुरिसं पि हणइ. नो पुरिसे वि हणइ" પુરુષની હત્યા પણ કરે છે અને તે હણનાર પુરુષ સિવાયના અન્ય ની પણ હત્યા કરે છે. હવે તેનું કારણ જાણવા નિમિત્તે ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને આ प्रभारी प्रश्न रे छ-" से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ, पुरिसं पि हणइ, नो पुरिसे वि हणइ ?" प्र! मा५ । १२) मे ४ छ। पुरुषनी त्या કરતી તે વ્યક્તિ પુરુષને પણ હણે છે અને તે પુરુષ સિવાયના અન્ય જીવને પણ સાથે સાથે હણે છે? भडावीर प्रभुन। उत्तर-" गोयमा !" हे गौतम ! “ तस्स णं एवं भवइ, एवं खलु अहं एगं पुरिसं हणामि" ते त्या ४२ना२ पुरुष तो मेम ४ माने छे ' मा ४१ पुरुषनी त्या 3री २wो छु, परन्तु “से णं एगं पुरिसं हणमाणे अणेगे जीवे हण" मे पुरुषनी त्या ४२नारी से पुरुष, श्री. भगवती सूत्र : ८

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