Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 650
________________ प्रमेयचन्द्रिकाटी-श०९४०३३.१जमालेदेवभवान्तरंसिद्धिगतिपर्यन्त वणनम ३९ ____ छाया-जमालिः खलु भदन्त ! देवस्तस्माद् देवलोकात् आयुःक्षयेण यावत् कुत्र उपपत्स्यते १ गौतम ! चत्वारि, पञ्च तिर्यग्योनिकमनुष्यदेवभवग्रहणानि संसारम् अनुपर्यटय ततः पश्चात् सेत्स्यते, यावत् अन्तं करिष्यति, तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥ सू० १७ ॥ जमालिः समाप्तः टीका-जमालेरनगारस्य वक्तव्यतामुपसंहरन् गौतमः पृच्छति-जमालीणं भंते' इत्यादि, 'जमाली णं भंते देवे ताओ देवलोयाश्रो, आउखएणं जाब कहि उबवज्निहिइ ३' हे भदन्त ! जमालिः खलु देवस्तस्मात् त्रयोदशसागरोपमस्थितिकात् लान्तकात् देवलोकात् आयुःक्षयेण यावत् भवक्षयेण, स्थितिक्षयेण कुत्र उपपत्स्यते ? उत्पत्तिं लप्स्यते ? भगानाह- गोयमा! चत्तारि पंचतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवाभवग्गहणाई संसारं अणुपरियट्टित्ता तो पच्छा सिज्झिहिइ, जाव अंतं काहेइ' हे गौतम ! चत्वारि पञ्च वा तिर्यग्योनिक मनुष्यदेवभवग्रहगानि यावत् संसारम् अनुपर्यटथ-परिभ्रम्य ततः पश्चात् तदनन्तरं सेत्स्यते-सिद्धि ‘जमाली गं भंते ! देवे ताओ देवलोयाओ ' इत्यादि । ____टीकाथ-जमालि अनगार की वक्तव्यता का उपसंहार करते हुए गौतम प्रभु से पूछते हैं 'जमाली गं भंते ! देवे ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं जाब कहिं उववज्जिहिह' हे भदन्त ! जमालि अनगार तेरह १३ सागरोपम की स्थितिवाले उस लान्तक देवलोक से अपनी आयु के क्षय होने के बाद, यावत्-भवक्षय के बाद, स्थितिक्षय के बाद कहां उत्पन्न होगा ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम! 'चत्तारि पंच तिरिक्खजोणियं मणुस्स देवभवग्गहणाई संसारं अणुपरियट्टित्ता तओ पच्छा सिज्झिहिइ, जाव अंत काहिइ' चार या "बमाली जे भंते । देवे तामो देवलोयाओ" त्याह ટીકાઈ_જમાલી અણગારની વક્તવ્યતાને ઉપસંહાર કરતાં ગૌતમ स्वामी महावीर प्रभुने मा २ने प्रश्न पूछे छे-" जमाली णं भंते ! देवेताओ देवलोयाओ आउखएणं जाव कहि उववजिहिइ" महन्त ! १३ સાગરેપમની આયુષ્ય સ્થિતિવાળા તે લાન્તક દેવલોકમાંથી આયુને ક્ષય થયા બાદ, ભવનો ક્ષય થયા બાદ અને સ્થિતિને ક્ષય થયા બાદ, જમાલી અણગાર ત્યાંથી અવીને કયાં ઉત્પન્ન થશે ? महावीर प्रभुन। उत्तर--" गोयमा ! 8 गौतम ! “चत्तारि पंप तिरिक्ख जोणिय' मगुस्वदेवभवग्गहगाई संसार' अणुपरियट्टित्ता तो पच्छा श्रीभगवती. सूत्र: ८

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