Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 623
________________ भगवतीसूत्रे विचिकित्सायुक्तो जातः ! भेदसमापन:-भेदं मतेर्भङ्ग किंकर्त्तव्यतालक्षणं समापन्न:-प्राप्तः। कलुषसमापन्न:-कलुषम् 'नाहं किमपि जानामि ?' इत्येवं रूपं स्वात्मनि दौमनस्यं प्राप्तथापि अभवत् , ' णो संचाएइ भगवओ गोयमस्स किंचि वि पमोक्खमाइक्वित्तए' तुसिणीए संचिट्ट ' नो खलु स जमालिः शक्नोति-समर्थों भवति, भगतो गौतमस्य किञ्चिदपि किमपि प्रमोक्ष-प्रत्युत्तर माख्यातुम्-जमालिः गौतमस्य उक्तप्रश्नद्वयस्योत्तरं दातुं समर्यो नाभूदिति भाव: अपितु तूष्णीकः संतिष्ठते-मौनमालम्ध्य तिष्ठति, तदनन्तरम्-' जमालीति समणे भगवं महावीरे जमलि आगारं एवं वयासी'-हे जमाले ! इति आमन्त्र्य श्रमणो भगवान महावीरो जमालिम् अनगारम् एवं प्रमाणपकारेण अवादीत्'अस्थि णं जमाली ! ममं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा छउमत्था, जे णं पभू एयं वागरणं वागरित्तर जहागं अहं' हे जमाले ! सन्ति खलु मम बहवोऽन्ते. इस प्रकारकी विचिकित्सासे युक्त हो गये। भेद समापन्न-किं कर्तव्यतारूप मतिभेदको प्राप्त हो गये. कलुष समाग्न-"मैं कुछ नहीं जानता इं" इस प्रकारसे अपनी आत्मामें दौमनस्यको प्राप्त हो गये। 'णो संवाए इ भगवओ गोयनस्स किंचिधि पमोक्खाइक्खित्तए, तुसिणीए संचिट्ठह ' अतः वे भगवान् गौतमके दोनों प्रश्नोंका कुछ भी उत्तर नहीं दे सके । केवल चुपचापही रहा । इसके बाद " जमालीति समणे भगवं महावीरे जमालि अनगारं एवं बयासी' श्रमण भगवान् महावीरने हे जमाले ! इस प्रकार से संबोधित करते हुए उनसे कहा'अस्थिणं जमाली । मम बहरे अंतेवासी समगा निग्गंया छ उमत्था સાથી તેઓ યુક્ત થયા. “શે જવાબ આપ-શાશ્વત કહેવું કે અશાશ્વત કહેવું,” એવા મતિભેદથી તેઓ યુક્ત બન્યા. આ પ્રમાણે જવાબ આપવાને पोत मसभथ डावाथी तभ। मात्मा मिन्न थयो “णो संचाएइ भगवओ गोयमस्म किंचि वि पमोक्खाइक्खित्तए तुसिणीए सचिदुई” म प्रानी પરિસ્થિતિમાં મૂકાયેલા જમાલી અણગાર ભગવાન ગૌતમના પ્રશ્નોને કઈ પણ ઉત્તર આપી શકયા નહીં કેવળ ચુપચાપ ઊભા જ રહ્યા. ત્યાર બાદ મહાવીર પ્રભુ તે પ્રશ્નોને કે ઉત્તર આપે છે તે સૂત્રકારે सताव्युं छ-" जमालि ति समणे भगवं महावीरे जमालि अणगार एवं चयामी" त्या२ माह " मादी!" से समापन शत श्रम मा. વાન મહાવીરે જમાલી અણગારને આ પ્રમાણે કહ્યું – " अस्थिण जमाली ! ममं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा छ उमत्था जे पंप एवं वागरण वागरित्तए-जहा अहं" 3 माही! भा२। भने श्रम श्री. भगवती सूत्र : ८

Loading...

Page Navigation
1 ... 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685