Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 636
________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श०९७०३३सू०१६ देवकिल्विषिकमेदनिरूपणम् ६१५ परिवसति । देव किनिसियाणं भंते ! केसु कम्मादाणेसु देवकिब्बितियत्ताए उववत्तारो भवंति ? गोयमा जे इमे जीवा आयरीयपडिणीया उवज्झायपडिणीया कुलपडिणीया गणपडिणीया संघपडिणीया आयरियउवज्झायाणं अयसकरा अवन्नकरा अकित्तिकरा बहुहिं असब्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिनिवेसेहिय अयाणं च परं च तदुभयं च बुग्गाहेमाणा वुप्पा. एमाणा बहुइं वासाइं सामन्नपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकंते कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवकिब्बिसिएसु देवकिब्बिसियत्ताए उववत्तारो भवंति, तं जहा तिपलिओमट्टिइएसुवा, तिसागरोवमट्टिइसु वा, तेरस. सागरोवमट्टिइएसु वा । देवकिब्बिसियाणं भंते ! ताओ देव. लोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छंति, कहिं उववजति ? गोयमा ! जाव चत्तारि पंचनेरइय तिरिक्खजोणियमणुस्सदेवभवग्गहणाई संसारं अणुपरियद्वित्ता तओ पच्छा सिझंति, बुझंति, जाब अंतं करेंति, अत्थेगइया अणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउ, रंतसंसारकंतारं अणुपरियति । जमाली णं भंते ! अणगारे अरसाहारे विरसाहारे अंताहारे पंताहारे लूहाहारे तुच्छाहारे अरसजीवी, विरस जीवी जाव तुच्छ जीवी उवसंतजीवी पसंतजीवी विवित्तजीवी ? हंता, गोयमा जमाली णं अणगारे अरसाहारे विरसाहारे जाव विवित्तजीवी । जइणं भंते ! जमाली श्री. भगवती सूत्र : ८

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