Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 526
________________ प्रमेयमन्द्रिका टी० श०९ उ ०३३ १०८ जमालेक्षिानिरूपणम् ५१५ कुमारस्स माया हंमलक्खणेणं पडसाडरगं आगकेसे पडिच्छइ' ततः खलु सा जमालेः क्षत्रियकुमारस्थ माता हंसलक्ष गेन हसवत् शुक्लेन चिन्हेन या पटशाटकेन पटरूपः शाटकः पटशाटकः शाटकोहि शटनकारकोऽपि उच्यते अत स्तन्निरासार्थ पटग्रहणम्, अथवा शटको वस्त्रमात्रमुच्यते स च पृथुलः पटोऽभि धीयते इति पटशाटकः, तेन पट्टाम्बरेण अग्रकेशान् जमालेः शिरोरुहान प्रती. च्छति-गृह्णाति, पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदएणं पकवालेइ' प्रतीष्य गृहीत्वा सुरभिगा गन्धोदकेन प्रक्षालयति, · पावालेत्ता अग्गेहिं वरेहि, गंधेहि मल्लेहिं, अच्चेइ ' प्रक्षालप अग्र्यैः प्रधानः वरैः अठैः, गन्धैः परिमलैः, माल्यैः पुष्पादि. स्त्रग्भिः अर्चति-पूजयति 'अचित्ता सुद्धवत्थेणं बंधेइ, वेधित्ता रयणकरंडगंसि तियकुमारस्स माया हंसलक्खणेणं पडसाडएणं अग्गकेसे पडिच्छ।' क्षत्रियकुमार जमालिके उन कतित अग्रकेशोंको उसकी माताने सके जैसे अथवा हंसके चिह्नवाले पटशाटक-रेशमीतौलियांमें ले लिया यहां पर जो शाटकके माथ पट शब्द रखा गयाहै, उससे शटनकारक सहनेवाले शटकका व्यवच्छेद किया गयाहै. इससे पटरूपसे जो शाटक वह पट शाटक है ऐसा बोध होता है, पटरूप शाटक जिसे भाषामें तौलिया कहते हैं कहलाता है । अथवा शाटक नाम वस्त्र मात्रका है। मोटा जो वस्त्र होता है वह पटशाटक कहा गया है। ऐसा पटशाटक तौलिया रूप वस्त्र होता है । 'पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदएणं पक्खालेइ' तौ. लियामें रखकर फिर उसने उन्हें सुरभि गंधोदकसे प्रक्षालित किया 'पक्खालेत्ता' प्रक्षालित करके उसने 'अग्गेहिं' प्रधान 'वरेहि। श्रेष्ठ ' गंधेहिं ' गन्ध द्रव्योंसे और मल्लेहिं 'मालाओंसे 'अच्चे' माया हंसलक्खगेण पडसाडएण' अग्गकेसे पडिच्छइ" क्षत्रियकुमार relat અગ્રકેશને તેની માતાએ હંસના જેવા સફેદ રેશમી ટુવાલમાં (પટફાટકમાં) અથવા હંસના ચિહ્નવાળા રેશમી ટુવાલમાં લઈ લીધાં અહીં જે શાટકની સાથે પટ શબ્દ રાખવામાં આવ્યા છે, તેના દ્વારા શનકારક શાકનો વ્યવછેદ કરવામાં આવેલ છે. તેથી “પટ રૂપ જે શાટક તેને પટાટક કહે છે " એ બધ થાય છે. તે પટરૂપ શાટકને હિન્દી ભાષામાં તૌલિયા (ટુવાલ) કહે છે. અથવા દરેક વસ્ત્રને શ ટક કહે છે અને જાડા વસને પટણાટક કહે छ. " पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदएण पक्खालेइ" टुपातमा स तत पालन शुद्ध सुगन्धित vथी घाया. "पखालेता" घोऊन तो “ अग्गे" प्रधान (भुज्य) " वरेहिं” श्रेष्ठ “गंधेहि " सुगन्धित द्रव्यो १९ भने "मलेहि " भासामे ५ " अच्चेइ" तेनी ५ ४२१. " अच्चित्ता"yon श्री. भगवती सूत्र : ८

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