Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 601
________________ ५९० भगवतीस्त्रे ५वं प्ररूपयति-एवं खलु चलद् वस्तु चलितमिति व्यपदिश्यते, उदीयमाणं वस्तु उदीर्णमिति व्यवहियते, यावत् वेद्यमानं घेदितम्, प्रहीयमाणं प्रहीणम् , छिध. मानं छिन्नम् , भिद्यमानं भिन्नम् , दह्यमानं दग्धम् , म्रियमाणो मृतः, निर्जीयमाणे वस्तु निर्जीर्णमिति व्यपदिश्यते इति, तत् खलु मिथ्या, सर्वथा असत्यमेव उक्तयुक्त्तेः भूत-वर्तमान कालयोर्भेदेन कृतक्रियमाणयोरत्यन्तभेदात् 'इमं च णं पच्चक्वमेव दीसइ सेज्जासंथारए कज्जमाणे अकडे, संथरिज्जमाणे असंथरिए' इदं च खलु प्रत्यक्षमेव दृश्यते-शय्यासंस्तारकः क्रियमाणः अकृतो भवति, संस्तीयमाणः असंस्तृतो भवति । प्रकृतमुपसंहरन् आह-' जम्हाणं सेज्जासंथारए भाषण करते हैं, प्रज्ञापित करते हैं, ऐसी प्ररूपणा करते हैं कि जो वस्तु चलमा, है-चल रही है-वह चलित चल चुकी है, जो वस्तु उदीयमाण है, वह उदीर्ण हो चुकी है, यावत् जो वेद्यमान है, वह वेदित हो चुकी है, जो प्रहीयमाण है वह प्रहीण हो चुकी है, ऐसी कही जाती है-इसी तरह छिचमान छिन्न, भिद्यमान भिन्न, दह्यमान दग्ध, म्रियमाण मृत, और निर्जीयमाण निजीण कही जाती है-सो ऐसा उनका कथन मिथ्या है-सर्वथा असत्य ही है। क्योंकि उक्त युक्तिके बलसे भूत और वर्तमान रूप कृत क्रियमाणमें अत्यन्त भेद है-अतः इनमें अभेद प्रतिपादित करने वाला वचन सर्वथा मिथ्या ही है। 'इमं च णं पच्चक्खमेव दीसा सेज्जासंथारए काजमाणे अकडे, संयरिजमाणे असंथरिए' क्योंकि हम यह प्रत्यक्षमें देख रहे है कि क्रियमाण यह शय्यासंस्तारक अकृत है, संस्तीर्यमाण यह असं મહાવીર પશુ મને ઈષ્ટ નથી ” તે સંકલ્પને મનોગત કહેવાનું કારણ એ છે કે જમાલી અણગારે પિતાને તે વિચાર કે ઇની પણ આગળ પ્રકટ કર્યો ન હતોપણ પિતાના મનમાં જ રાખ્યો હતો. જમાલિ અણગારે મહાવીર પ્રભુને ઉપર્યુક્ત કથનને અસત્ય કેમ માન્યું તે હવે બતાવવામાં આવે છે નીચે દર્શાવેલી દલીલ દ્વારા જ માલી આણગાર ભૂત અને વર્તમાન રૂપ કૃત અને ક્રિયમાણમાં ભેદ માનીને, તે બન્નેમાં અભેદનું પ્રતિપાદન કરનારા ભગવાનનાં વચનને મિથ્યા–અસત્ય માને છે. "इमपणे पचा वमेव दीसइ सेम्जासंथारए काजमणे, अकडे, संथरिजमाणे असंथरिए " २५ भने त मा प्रत्यक्ष अनुभव 25 २wो छ વવામાં આવી રહેલું આ શાસસ્તારક બિછાવાઈ ચુકયું નથી, અને એ રીતે સંસ્તીમાણુ એવું તે સંતારક અસંતૃત જ છે. श्री. भगवती सूत्र : ८

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