Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 582
________________ प्रमेयमन्दिका टो० श०१ उ ०३३ १०१२ जमाले शानिरूपणम् ५७१ पूर्ववदेव यावत् सर्व प्रव्रज्यादिकं गृह्णाति जमालिः क्षत्रियकुमारः, सामायिकादीनि एकादश अङ्गानि अधीते, 'अहिज्जेत्ता वहूहि चउत्थ छदम जाव मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ' सामायिकादीनि एकादश अङ्गानि अधीत्य बहुभिरनेकैचतुर्थपष्ठाष्टम यावत् मासार्द्धमासक्षपणैः विचित्रैस्तपःकर्मभिः आत्मानं भावयन् विहरति ॥ मू० १२ ॥ जमालिविशेष वक्तव्यता प्रस्तावः । मूलम्--तए णं से जमाली अणगारे अन्नया कयाई जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीइच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भगुन्नाए समाणे पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं बहिया जणवयविहार विहरित्तए । तए गं पांचसौ पुरुषों के साथ ग्रहण की यही ऋषभदत्तकी प्रव्रज्यासे यहां विशे. षता है । और सब उसने पहिले की तरह से प्रत्रज्यादिक ग्रहण की। क्षत्रियकुमार जमालिने सामायिक आदि ग्यारह अंगोंका अध्ययन किया 'अहिज्जेत्ता बाहिं च उत्थ छटम जावमासमासखमणेहिं विचित्तेहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ' सामायिकादि ११ अंगोंका अध्ययन करके फिर उसने अनेक प्रकारके विचित्र चतुर्थभक्त, षष्ठ, अष्ठम मासार्द्धमास क्षपण तपों द्वारा आत्माको भावित किया ।मु०१२॥ माइयाइं एकारसगाई अहिज्जइ" ४ माटी ५०० पुरुष सा2 Haril AY 3री ती અષમદત્ત બ્રાહણે એકલા જ પ્રવજ્યા લીધી હતી. બાકીનું સમસ્ત કથન ઋષભદત્ત બ્રહ્મણની પ્રવજ્યાના વર્ણન પ્રમાણે સમજવું. ત્યારબાદ ક્ષત્રિય सुभा२ मामीन यि कोरे ११ मार्नु २५६५यन यु. “ अहिज्जेत्ता बहहिं च उत्थ छन? जाव मास द्वमाखमणेहि विचितेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ" 11 मगेनु अध्ययन रीने तो यतु सात (मे દિવસને ઉપવાસ), છ, અમ વગેરે તપસ્યા કરી તથા અર્ધમાસખમણ અને મા ખમણરૂપ અનેક વિવિધ તપસ્યાઓથી તેણે પોતાના આત્માને ભાવિત કર્યો. એ સૂ ૧૨ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૮

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