Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 563
________________ ARE ५५२ भगवतीसरे ध्यजनिकायं प्रति स प्रवीजितश्वेत चामरवालव्यजनिकः, अथवा प्रवीजिते श्वेतचामरे बालव्यानिकेच यं प्रति स तथा, सर्ववर्या सर्वा ऋद्धिः सर्वद्धिः, तया यावत् नादितरवेण, तथाहि-सर्वद्युत्या सर्वत्रलेन सर्व समुदयेन सर्वादरेण सर्व विभूत्या सर्वविभूषया सर्वसंभ्रमेण सर्व पुष्यगन्धमाल्यालङ्कारेण सर्वत्रुटितशब्दसंनिनादेन महत्या ऋदया महत्या धुत्या महता बलेन महता समुदायेन महता वरत्रुटितयमकसमकवादितेन शङ्खपणवपटह भेरीझल्लरीखरमुखी हुडुकमुरजमृदङ्ग दुन्दुभि निघोंग-नादिन-रवेण-वरत्रुटितादीनां दुन्दुभिपर्यन्तानां वादित्राणां निवेोषः शब्दः तस्य नादितरवेण प्रतिध्वनिना सह एषां विस्तरतोऽर्थ औषपातिके द्विश्चिाशत्तर (५२) सूत्रे मनपीयूषवर्षिणी टीकायाम् अालोकनीयः, ' खत्ति यकुंडग्गामस्स नयरस्स मज्झं मझेग, जेणेव माहणकुंडअर्थात् अपनी समस्त राज्यऋद्धिसे, "सबजुईए" समस्त वस्त्र और आभरणोंकी प्रभासे "सवयलेणं" अपनी समस्त सेनाओंसे "सव समुदएणं" अपने समस्त परिजनोंसे "सव्वादरेणं" आदरसत्कार रूप सभी प्रयत्नोंसे "सम्वविभूईर" अपने समस्त ऐश्वर्य से "सयविभूसाए" सभी प्रकार के वस्त्राभरण को शोभासे "सव्वसं नमेणं" भक्ति जनित अत्यधिक उत्सुकनासे "सच-पुपक-गंध-मल्लालंकारेण" सय तरहके पुष्पों से सभी प्रकार के गन्ध द्रव्यों से सभी प्रकारकी मालाओं से एवं सब तरह के अलंकारों से "सयतुडिय-प्सह-सणिणाएणे" सभी प्रकार के वादित्रों की मधुर ध्वनि से युक्त हुवा 'खत्तिय कुंडग्गामनपरस्त मज्झ मज्झेणं-जेणेव माहणकुंड. ग्गामे नगरे जेणेव बहुसाल ए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारेस्थ गमणाए' क्षत्रिय कुण्डग्राम नगरके बीचसे होकर तथा माभूषशाना प्रभाव 43 “ सव्वबलेणं " पाताना समस्त सेनाशाह, "मयसमदएण" यातना समस्त परिजनी १: " सव्वादरेण" माहर सा२ ३५ सा प्रयत्न 43, “सबविभईए" पोतना समरत अश्य 43, “ सव्वविभूसाए" तमाम प्रधान पखालारानी शमा 43, "सधसंभमेणं " arनित सत्यात उत्सुता १, “सब्ब-पुप्फ-गंध-मल्ल्ला . लंकारेण" सब ४२ yo 43 स ५१२॥ ५ द्रव्ये १४ सर्व मारनी भा 43 सने या प्रा२न २०१२। 43 " सचतुडियसह-सण्णिणाएणं " ५५ प्राना पत्राना मधु२ पनि युत थान "खत्तियकुंडग्गामनयरस्त मज्ज' मज्झेणं-जेणेव माहणकुंड. श्रीभगवती. सूत्र: ८

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