Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेवचन्द्रिका टीका श० ५ उ० १ सू० ४ लवणसमुद्रवक्तव्यतानिरूपणम् ९१ भवइ ' हे मौतम ! हन्त, सत्यम् , एवं चैव-त्वदुक्तं सर्वमेवेत्यर्थः, यावत्-रात्रिभवति, इत्यन्तम् , तथा च यावत्करणात् पूर्वपक्षोक्तं सर्व संग्राह्यम् । पुनगौतमः प्रकारान्तरेण पृच्छति-'जयाणं भंते !' इत्यादि । हे भदन्त ! यदा खलु 'धाय इसंडे दीवे 'धातकिखण्डे द्वीपे ' मंदराणं पन्बयाणं' मन्दराणां पर्वतानाम् पुरत्यिमेणं दिवसेभवइ ' पौरस्त्ये खलु दिवसो भवति ' तयाणं ' तदा खलु पच्चत्थिमेण वि ' पश्चिमेऽपि दिवसो भवति — जयाणं ' यदा खलु ‘पच्चस्थिमेण वि' पश्चिमेऽपि दिवसो भवति ' तयाणं तदा खलु 'धाइयसंडेदीवे' धातकिखण्डे द्वीपे 'मंदराणं पव्वयाणं' मन्दराणां पर्वतानाम् ' उत्तरेणं दाहिणेगं' उत्तरे दक्षिणे उत्तर-दक्षिणभागे ' राईभवई ? ' रात्रिभवति ? जाव राई भवइ ) हां गौतम। ऐसा ही होता है-यावत् रात्रि होती है। यहां यावत् पद से पूर्वपक्षोक्त सब पाठ ग्रहण किया गया है। अब गौतम प्रकारान्तर से पूछते हैं कि-( जया णं भंते!) हे भदन्त ! जब (धायइसंडे दीवे) धातकी खण्ड द्वीप में (मंदराणं पव्ययाणं) मन्दपर्वतों के (पुरथिम) पूर्व दिग्भाग में (दिवसे भवइ ) दिवस होता है, (तया णं) उस समय (पच्चत्थिमेणं वि) पश्चिमदिग्भाग में भी (दिबसे भवइ ) दिवस होता है। अतः (जया णं ) जब (पच्चत्मिणं वि दिवसे भवइ ) पश्चिमदिग्भाग में भी दिवस होता है-(तया णं) तब (धायइसंडे) धातकीखंड (दीवे ) नामके द्वीप में (मंदाणं पव्वयाणं) मन्दर पर्वतों के ( उत्तरेणं दाहिणे ण) उत्तर-दक्षिण दिग्भाग में (राई भवइ) रात्रि होती है क्या? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से
उत्तर-" हता, गोयमा! " है, गौतम! मे मने छ, “ जाव राई भवई " स्यारे घातडीमना उत्तराध मने दक्षिामा रात्री थाय छे. त्यारे તેમાં આવેલા મંદર પર્વતના અને પશ્ચિમ દિમ્ભાગમાં રાત્રિ થાય છે.
प्रश्न-" जयाण भंते !" उ महन्त ! न्या' “धायइसंडे दीवे" घाती' द्वीपमi " मंदराण पव्वयाण पुरथिमेणं दिवसे भवइ " म४२ ताना पूर EिAnwi EqA थाय छे, त्यारे ( पच्चस्थिभेण वि दिवसे भवइ ? ) शु परियम हिमालमा ५५ हिवस थाय छ ? भने " जयाण" न्यारे "पच्चस्थिमेण वि दिवसे भव" पश्चिम हिमालमा हिवस थाय छे. “ तयाण" त्यारे “धाह. सडे दीवे" पातीद्वीपना " उत्तरेण दाहिणेण राई भवइ ?" उत्तर भने દક્ષિણ દિભાગમાં શું રાત્રિ થાય છે?
श्री. भगवती सूत्र:४