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शब्द स्कंध जन्य है और स्कंध परमाणुदल का संघात है और वे स्कंध स्पशित होने से-टकराने से शब्द उत्पन्न होता है। इस प्रकार शब्द नियत रूप से उत्पाद्य है।
शब्द पुद्गल स्कंध पर्याय है। इस लोक में, वाह्य श्रवणेन्द्रिय द्वारा अवलम्वित, भावेन्द्रिय द्वारा जानने योग्य ऐसी ध्वनि वह शब्द है। वह ( शब्द ) वास्तविक स्वरूप से अनन्त परमाणुओं की एक स्कंध रूप पर्याय है। अनन्त परमाणुमयी शब्द योग्य वर्गणाओं से समस्त लोक भरपूर होने पर भी जहाँ-जहाँ वहिरंग कारण सामग्री उदित होती है वहाँ-वहां वे वर्गणायें शब्द रूप से स्वयं परिणमित हो जाती है ।
परमाणु शब्द स्कंध रूप से परिणमित होने की शक्ति स्वभाववाला होने से शब्द का कारण है ; एक प्रदेशी होने के कारण शब्दपर्याय रूप परिणति न वर्तती होने से अशब्द है।
___ अस्तु स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शब्द रूप (पांच) इन्द्रिय विषय, स्पर्शन, रसन, घ्राणु चक्षु और श्रोत्र रूप ( पांच ) द्रव्येन्द्रियं, औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मणरूप ( पांच ) शरीर, द्रव्यमन, द्रव्यकर्म, नोकर्म, विचित्र पर्यायों की उत्पत्ति के हेतुभूत ( अर्थात अनेक प्रकार की पर्यायें उत्पन्न होने के कारण भूत ) अनंत अनंताणुक वर्गणाऐं, अनंत असंख्याताणुक वर्गणाएं और द्वि-अणुक स्कंधतककी अनंत संख्यातणुक वर्गणाएँ तथा परमाणु, तथा अन्य जो कुछ मूर्त हो वह सब पुद्गल के भेद रूप से समेटना चाहिए ।
लोक में अनंत परमाणुओं की बनी हुई वर्गणाऐं अनंत हैं, असंख्यात परमाणुओं की बनी हुई वर्गणाऐं अनंत हैं, और ( द्वि-अणुक स्कंध, त्रि-अणुक स्कंध इत्यादि ) संख्यात परमाणुओं की बनी हुई वर्गणाएं भी अनंत है। अविभागी परमाणु भी अनंत हैं।
लोक में जीवों को और पुद्गलों को वैसे ही शेष सब द्रव्यों को जो सम्पूर्ण अवकाश देता है वह आकाश द्रव्य है। पंचास्तिकाय संग्रह में श्रीमद् कुन्दकुन्दाचार्य ने कहा है
आगासकालजीवा धम्माधम्मा य मुत्तिपरिहीणा।
मुत्तं पुग्गलदव्वं जीवो खलु चेदणो तेसु ॥९७॥ अर्थात् पुद्गल द्रव्य मूर्त है -शेष धर्मास्तिकाय आदि पांच द्रव्य अमूर्त है । उनमें जीव चेतन है बाकी पांच द्रव्य अचेतन है ।
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