Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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कारकसाकल्यवादः
तमव्यपदेशाहम्, यथा हि च्छिदिक्रियायां कुठारेण व्यवहितोऽयस्कारः, स्वपरपरिच्छित्तौ विज्ञानेन व्यवहितं च परपरिकल्पितं साकल्यादिकमिति । तस्मात् कारकसाकल्यादिकं साधकतमव्यपदेशाह न भवति ।
____किंच; स्वरूपेण प्रसिद्धस्य प्रमाणत्वादिव्यवस्था स्यान्नान्यथाप्रतिप्रसङ्गात्-न च साकल्यं स्वरूपेण प्रसिद्धम् । तत्स्वरूपं हि सकलान्येव कारकाणि, तद्धर्मो वा स्यात्, तत्कार्यं वा, पदार्थान्तरं
स्मृतम्', नैयायिक वैशेषिक तो लिखित आदि को प्रमाण मानते हैं, अर्थात् राजशासनादि के जो कानून लिखे रहते हैं वही प्रमाण है ऐसा कहते हैं, जिसमें साक्षी देनेवाले पुरुष हों वे पुरुष भी प्रमाण हैं (अथवा साक्षी देनेवाला पुरुष भी प्रमाण है) तथा-भुक्तिः– उपभोग करनेवाला या जिसका जिस वस्तु पर कब्जा हो वह पुरुष प्रमाण है, ऐसा तीन प्रकार का प्रमाण मानने वाले का भी ज्ञान पद से खंडन हो जाता है, क्योंकि वह भी अज्ञानरूप है, वास्तविक प्रमाण तो ज्ञान ही होगा, इसी को और भी सिद्ध करते हैं- जो अन्य से व्यवहित होकर जानता है वह साधकतम नहीं होता, जैसे बढई कुल्हाड़ी से व्यवहित होकर लकड़ी को काटता है। पर के द्वारा माना गया कारकसाकल्यादिक भी स्व पर की परिच्छित्ति में ज्ञान से व्यवहित होते हैं, अतः वे साधकतम नहीं होते हैं।
भावार्थ-नैयायिक प्रादि वेदवादियों का मान्यग्रन्थ “याज्ञवल्क्य स्मृति" नामका है, उसमें लिखित प्रादि प्रमाणों के विषय में श्लोक है कि
प्रमाणं लिखितं भुक्तिः साक्षिणश्चेति कीर्तितम् । एषामन्यतमाभावे दिव्यान्यतममुच्यते ।।२।।
- अध्याय २ अर्थ -लिखितप्रमाण, भुक्ति प्रमाण, साक्षीप्रमाण, इस प्रकार मानुष प्रमाण के ३ भेद हैं, राज्यशासन के अनुसार लिखे हुए जो पत्र हैं, वे लिखित प्रमाण हैं, उपभोग करनेवाला अर्थात् जिसका जिस वस्तु पर कब्जा है वह व्यक्ति या उसका कथन भुक्ति प्रमाण है, जिस वस्तु के विषय में विवाद होने पर उसके निर्णय के लिए जो साक्षीदार होते हैं उन पुरुषों को ही साक्षी प्रमारण कहते हैं, साक्षी पुरुषों के विषय में लिखा है कि
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