Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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ब्रह्माद्वैतवाद पूर्वपक्ष:
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इच्छा न होना, शम दम श्रादि छह कर्त्तव्य, और मोक्ष की इच्छा ये सब मोक्ष प्राप्तिके उपाय हैं । "शमादयस्तु - शमदमोपरतितितिक्षा समाधानश्रद्धाख्याः" शम, दम, उपरति, तितिक्षा समाधान और श्रद्धान ये छह शमादिक हैं, इन शमादिरूप कर्त्तव्यों के साथ ध्यान आदि की सिद्धि होने पर मोक्ष प्राप्त होता है ।
छठवें प्रश्न का समाधान
"न तस्य प्राणा उत्क्रामति, अत्रैव समवलीयन्ते" शमादि षट्-संपत्ति से युक्त तथा ध्यान समाधि के अभ्यासक जीवकी जीवन्मुक्त अवस्था होती है, उस अवस्था में अज्ञान क्रिया समाप्त होती है अर्थात् प्रागामी कर्मका नाश होता है आनंद और कैवल्य की प्राप्ति होती है, अन्त में प्रारब्ध कर्म भोगते २ समाप्त हो जाते हैं तब उस जीवन्मुक्त व्यक्ति के प्राण वहीं विलीन हो जाते हैं-अर्थात् परलोक में ब्रह्मलोक में जन्म लेने के लिए गमन नहीं करते हैं । यही मुक्ति कहलाती है अर्थात् जीवन्मुक्त व्यक्ति का चैतन्य परमब्रह्म में लीन हो जाता है, इसी का नाम मोक्ष है । मोक्ष होने पर उसके प्रारण वहीं विलीन होते हैं; क्योंकि सर्वत्र ब्रह्म है ही, उसीमें उसके प्राण समा जाते हैं। यहां तक जगत् की व्यवस्था, परमब्रह्म, उसकी प्राप्ति आदि का कथन किया, इससे सिद्ध होता है कि सारा विश्व, विश्व के कार्यकारणभेद, मोक्ष, मोक्ष के साधन आदि सब ही ब्रह्मस्वरूप हैं, ये दिखाई पड़ने वाले भिन्न भिन्न देश, या आकार सभी एक ब्रह्म के विवर्त्त हैं, अविद्या के समाप्त होने पर भेदभावना नहीं रहती इस प्रकार अभेद या अद्वैतका ज्ञान होना विद्या है, सृष्टिक्रम, ज्ञानेन्द्रिय प्रादि पूर्वोक्त १७ अवयव भेदवाले सूक्ष्म शरीरका पृथिवी आदि स्थूलभूतका वास्तविक ज्ञान होना तथा ईश्वर अर्थात् ब्रह्म और आत्मा जिसका कि लक्षण “तत्तदुभासकं नित्यं -शुद्ध-बुद्ध-मुक्त-सत्यस्वभावं प्रत्यक् चैतन्यमेवात्म वस्तु, इति वेदान्तविद्वदनुभवः” ॥ तत्तद्वस्तुनों का प्रकाश करता है, और नित्य शुद्ध, बुद्ध, मुक्त, सत्यस्वभाव प्रान्तरिक चैतन्यस्वरूप है, इन सबके तत्त्वज्ञान से परमब्रह्म प्राप्त होता है । इस प्रकार सारा विश्व ब्रह्ममय है, अतः ब्रह्माद्वैतवाद ही सिद्ध होता है ।
* ब्रह्माद्वैतवादका पूर्वपक्ष समाप्त*
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