Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
कैसे बन सकेगी कि वह उन दो ज्ञानों को ईश्वर के साथ ही जोड़ता है अन्य के साथ नहीं जोड़ता।
अच्छा-एक बात और हम प्रापसे पूछते हैं कि वे ज्ञान महेश्वर में ही समवेत हैं-मिले हुए हैं दूसरी जगह पर नहीं इस बात को कौन जानता है ? यदि ईश्वर जानता है तो स्वसंविदितपना ज्ञान में आता है जो कि अाप यौग को कडवा लगता है । यदि ज्ञान के द्वारा “मैं महेश्वर में समवेत हूं" ऐसा जानना होता है तो बात यह है कि महेश्वर का ज्ञान जब खुद को नहीं जानता है तो मैं महेश्वर में समवेत हैं ऐसा कैसे जान सकेगा ? और ज्ञान की अस्वसंविदित अवस्था में महेश्वर विचारा असर्वज्ञ हो जावेगा, अपने अप्रत्यक्ष ज्ञान से ही संपूर्ण पदार्थ प्रत्यक्ष जानकर उसमें सर्वज्ञता मानो तो सभी प्राणी ऐसे ही सर्वज्ञ हो जावेंगे । फिर ईश्वर और संसारी ऐसे दो भेद ही समाप्त हो जावेंगे।
एक विशिष्ट बात और ध्यान देने की है कि ज्ञान सामान्य का चाहे वह महेश्वर का हो चाहे हम जैसे का हो एक समान ही स्वपर प्रकाशक स्वभाव है; न कि किसी एक के ज्ञान का ।
योग का अनुमान में दिया गया प्रमेयत्व हेतु भी प्रसिद्ध है, क्योंकि पक्ष जो ज्ञान है वही अभी सिद्ध नहीं है वह धर्मीरूप ज्ञान प्रत्यक्ष से सिद्ध होगा या अनुमान से ? प्रत्यक्ष से यदि कहो तो वह इन्द्रियप्रत्यक्ष हो नहीं सकता-क्योंकि इन्द्रियों में ज्ञान को ग्रहण करने की ताकत नहीं है मानसिक प्रत्यक्ष कहो तो वह सिद्ध नहीं होता। युगपज्ज्ञानानुत्पत्ति आदि रूप जो सूत्र है वह मन को सिद्ध नहीं करता है । क्योंकि एक साथ अनेक ज्ञान होते हैं कि नहीं यही पहिले प्रसिद्ध है । अत: इस हेतु से मन की सिद्धि नहीं हो सकती। आपकी एक युक्ति है कि अपने आप में क्रिया नहीं होती है, अतः ज्ञान अपने आपमें अपने को जाननेरूप क्रिया नहीं करता है, सो यह युक्ति दीपकदृष्टान्त से समाप्त हो जाती है । दीपक अपने आपमें अपने को प्रकाशित करने रूप क्रिया करता है । आपके कहने से "स्वात्मनि क्रियाविरोधः” इस पर हम विचार करेंगे तो यह बतानो-कि स्वात्मा कहते किसे हैं-क्रिया के स्वरूपको या क्रियावान् प्रात्मा को ? क्रिया का स्वरूप क्रिया में कैसे विरुद्ध हो सकता है ? यदि स्वरूप ही विरुद्ध होने लग जाय तो सारी वस्तुएँ स्वरूपरहित-शून्य हो जावेंगी। "स्वात्मनि क्रिया
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