Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
ननु यावन्ति कार्याणि तावन्तस्तत्प्रागभावः, तत्रैकस्य प्रागभावस्य विनाशेपि शेषोत्पत्स्यमानकार्यप्रागभावानामविनाशान्न घटोत्पत्तौ सकलकार्योपलब्धिरिति; तानन्ताः प्रागभावास्ते कि स्वतन्त्राः, भावतन्त्रा वा ? स्वतन्त्राश्च कथं न भावस्वभावाः कालादिवत् ? भावतन्त्राश्चे किमुत्पन्नभावतन्त्राः, उत्पत्स्यमानभावतन्त्रा वा ? न तावदादिविकल्पः; समुत्पन्नभावकाले तत्प्रागभावविनाशात् । द्वितीयविकल्पोपि न श्रेयान् ; प्रागभावकाले स्वयमसतामुत्पत्स्यमानभावानां तदाश्रयत्वायोगात्, अन्यथा प्रध्वंसाभावस्यापि प्रध्वस्तपदार्थाश्रयत्वप्रसङ्गः । न चानुत्पन्नः प्रध्वस्तो वार्थः कस्यचिदाश्रयो नाम अतिप्रसङ्गात् ।
जैन-ऐसा है तो प्रागभाव अनंत हो गये ? अब वे प्रागभाव स्वतन्त्र हैं कि भाव तंत्र ( परतंत्र-पदार्थ के आश्रित ) हैं सो बताइये ? यदि अनंत प्रागभाव स्वतंत्र हैं तो वे भाव स्वभाव वाले कंसे नहीं कहलायेंगे ? अर्थात् वे भी काल आदि पदार्थों के समान सद्भाव रूप हो जायेंगे । दूसरा पक्ष-वे अनंत प्रागभाव भावतंत्र हैं (पदार्थों में आश्रित हैं) ऐसा मानें तो प्रश्न है कि उत्पन्न हुए पदार्थों के आश्रित हैं, अथवा उत्पत्स्यमान [प्रागे उत्पन्न होने वाले] पदार्थों के आश्रित हैं ? उत्पन्न हुए पदार्थों के आश्रित हैं, ऐसा कहना ठीक नहीं, क्योंकि पदार्थ के उत्पत्ति काल में प्रागभाव का नाश हो जाता है । दूसरा पक्ष-प्रागभाव उत्पत्स्यमान पदार्थों के आश्रित है ऐसा कहना भी श्रेयस्कर नहीं है, प्रागभाव के समय में जो स्वयं असत् रूप हैं ऐसे उत्पत्स्यमान पदार्थ प्रागभाव के लिये प्राश्रयभूत नहीं हो सकते हैं यदि आश्रयभूत हो सकते हैं तो प्रध्वंसाभाव का भी आश्रय नष्ट हुआ पदार्थ हो सकता है ? किन्तु जो उत्पन्न नहीं हुआ है तथा नष्ट हो चुका है ऐसा पदार्थ किसी का भी आश्रयभूत नहीं हो सकता है । भावार्थ यह है कि नष्ट एवं अनुत्पन्न पदार्थ प्राश्रय देने वाले होंगे तो नष्ट हुआ अथवा नहीं बना हुआ स्तंभ, महल का प्राश्रय देने वाला हो जायगा ऐसा अतिप्रसंग पाता है।
शंका -प्रागभाव को एक ही संख्या में माना जाय, एक ही प्रागभाव घट आदि विशेषण के भेद से भिन्न रूप उपचरित किया जाता है कि घटका प्रागभाव है पटका प्रागभाव है इत्यादि । तथा उत्पन्न हुए पदार्थ के विशेषणपनेसे उसका नाश होने पर भी उत्पत्स्यमान पदार्थ के विशेषणपने से वह अविनाशी है, अतः उस प्रागभाव को नित्य भी कहते हैं। भावार्थ-अभिप्राय यह है कि पदार्थ के निमित्त से प्रागभाव में भले ही भेद करो किन्तु वह एक ही है । उत्पन्न हुए पदार्थ का प्रागभाव नष्ट हो
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