Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 703
________________ ६५२ प्रमेयकमलमार्तण्डे प्रमाण संप्लव--“एकस्मिन् वस्तुनि बहूनां प्रमाणानां प्रवृत्तिः प्रमाण संप्लव:' अर्थात एक ही विषयमें अनेक ज्ञानोंकी जाननेके लिये प्रवृत्ति होना प्रमाण संप्लव कहलाता है। प्रमेय-प्रमाणके द्वारा जानने योग्य पदार्थ । प्रमाता--जाननेवाला आत्मा । प्रमिति-प्रतिभास या जानना। प्रसंग साधन-"परेष्टयाऽनिष्टापादनं प्रसंग साधनं" अर्थात् अन्य वादी द्वारा इष्ट पक्षमें उन्हीं के लिये अनिष्टका प्रसंग उपस्थित करना प्रसंग साधन कहलाता है। प्रधान या प्रकृति -सांख्य द्वारा मान्य एक तत्व, जो कि अचेतन है, इसीके इन्द्रियादि २४ भेद हैं। पुरुष-सांख्यका २५ वां तत्व, यह चेतन है इस चेतन तत्वको सांख्य अकर्ता एवं ज्ञान शून्य मानते हैं। प्रत्यासत्ति-निकटता को प्रत्यासत्ति या प्रत्यासन्न कहते हैं। प्रतिपाद्य-प्रतिपादक - समझाने योग्य विषय अथवा जिसको समझाया जाता है उन पदार्थ या शिष्यादिको प्रतिपाद्य कहते हैं, तथा समझाने वाला व्यक्ति-गुरु आदिक या उनके वचन प्रतिपादक कहलाते हैं। पर्युदास---"पर्युदासः सदृक् ग्राही" पर्यु दास नामका अभाव उसको कहते हैं जो एक का प्रभाव बताते हुए भी साथ ही अन्य सदृश वस्तुका अस्तित्व सिद्ध कर रहा हो। प्रसज्य-"प्रसज्यस्तु निषेधकृत्" सर्वथा अभाव या तुच्छाभावको प्रसज्य प्रभाव कहते हैं। परोक्षज्ञान वाद-ज्ञान सर्वथा परोक्ष रहता है अर्थात स्वयं या अन्य ज्ञान के द्वारा बिलकुल ही जानने में नहीं आ सकता ऐसा मीमांसक मानते हैं अतः ये परोक्षज्ञानवादी या ज्ञानपरोक्षवादी कहलाते हैं। प्रतिबंधक मरिण-अग्निके दाहक शक्तिको रोकनेवाला रत्न विशेष । प्रतियोगी-भूतल में ( आदिमें ) स्थित कोई वस्तु विशेष जिसको पहले उस स्थान पर देखा है। प्रमाण पंचकामाव-प्रत्यक्ष, अनुमान, अर्थापत्ति, उपमा और पागम इन पांच प्रमाणोंको मीमांसक विधि-यानी अस्तित्व साधक मानते हैं इन का अभाव प्रमाण पंचकाभाव कहा जाता है। __ प्रागभाव-जिसके प्रभाव होनेपर नियमसे कार्य की उत्पत्ति हो “यदभावे नियमतः कार्यस्योत्पत्तिः सः प्रागभावः" प्रागनंतर परिणाम विशिष्ट मृद् द्रव्यम् ।। अर्थात् मिट्टी आदिमें घटादि कार्यका प्रभाव रहना, प्राग पहले अभावरूप रहना प्रागभाव है । जैसे घट के पूर्व स्थास आदि रूप मिट्टी का रहना है वह घटका प्रागभाव कहलाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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