Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
पृ०
पंक्ति
अशुद्ध
शुद्ध
देव
४०५ ४१४
मेव नहीं होना
४१५
संशयात्मा
४२५ ४३५ ४५४ ४८४ ४६१
५२०
५२१ ५२२ ५२२ ५३८ ५५३ ५५५ ५६३ ५६३ ५७४ ५७५
होना यदि ऐसा प्रामाण्य है सशयात्मा अभय सङ्गा सध्याचल सास्वादिमान अनुपत्वमात्रसे उपमान अनुमान छेदनादान्वय अनपपत्त: हैं, क्योंकि सशयरूपत्वा प्रयोगि काटिकोक्त भस्य अपने अनादि सांत, जैसे मानसे भावात्रं स्यात और स्वका विफल चक्षुषस्य मनके इस त्वतिन्द्रियवत् जातीयपना रूपादि किरणों में से इन्द्रियातिन्द्रिय
उभय प्रसङ्गः सहयाचल सास्नामान् अनुपलंभमात्रसे प्रभाव उपमा छेदनादावन्वय अनुपपत्त: हैं, तो वह अनित्य है क्योंकि संशयरूपत्वा प्रतियोगि कारिकोक्त यस्य आपने अनादि सांत?
५७७ ५८० ५८० ५८१ ५८५
६०४
भावात्तं स्थास
और परका विनाश चक्षुषः नैयायिक-मनके इस त्वगिन्द्रियवत् जलीयपना रूपादिमेंसे इन्द्रियानिन्द्रिय
६०८
६०८
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