Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 643
________________ ५६२ प्रमेयकमलमार्तण्डे भावाः कृतका वाऽग्न्यादयो धूमादयो वा स्पष्टज्ञानविषया इत्यभ्युपगमोऽस्ति, अनुमानानर्थक्यप्रसङ्गात् । स हि व्याप्यं व्यापकं च स्पष्टतया युगपनिश्चिन्वतो न किञ्चिदनुमानसाध्यम् अन्यथा योगिनोप्यनुमानप्रसङ्गः । निश्चिते समारोपस्याप्यसम्भवो विरोधात् । कालान्तरभाविसमारोपनिषेधकत्वेनानुमानस्य प्रामाण्ये क्वचिदुपलब्धदेवदत्तस्य पुन: कालान्तरेऽनुपलम्भसमारोपे सति यदनन्तरं तत्स्मरणादिकं तदपि प्रमाणं भवेत् । तन्न व्याप्तिज्ञानमप्यस्पष्टत्वात् प्रत्यक्षं युक्तम् । ननु चास्पष्टत्वं ज्ञानधर्मः, अर्थधर्मो वा ? यदि ज्ञानधर्मः; कथमर्थस्यास्पष्टत्वम् ? अन्यस्यास्पष्टत्वादन्यस्यास्पष्टत्वेऽतिप्रसङ्गात् । अर्थधर्मत्वे कथमतो व्याप्तिज्ञानस्याप्रत्यक्षताप्रसिद्धिः ? कालान्तर में हो सकता है, अत: आगे आनेवाले समारोप का निषेधक होने से अनुमान में प्रमाणता मानी गई है। समाधान-तो ऐसे कथन के अनुसार आपको स्मरणादि ज्ञानों में भी प्रमाणता मानना पड़ेगी, जैसे-किसी पुरुष को कहीं पर देवदत्त की उपलब्धि हुई फिर कालान्तर में उसके ज्ञान में समारोप नहीं आया, और उसी देवदत्त का उसे स्मरणादिरूप ज्ञान हुआ है तो उस ज्ञान को भी आपको प्रमाण मानना चाहिये ? (बौद्धों ने स्मरणादि ज्ञान को प्रमाण नहीं माना है इसलिये उन्हें स्मरणादि को प्रमाण मानने की बात कही गई है) अत: अस्पष्ट होनेसे व्याप्ति ज्ञानको प्रत्यक्ष मानना ठीक नहीं है। बौद्ध-आप अस्पष्ट ज्ञान को प्रत्यक्ष नहीं कह रहे हो सो यह अस्पष्टता ज्ञान का धर्म है अथवा पदार्थ का धर्म है ? यदि ज्ञान का धर्म मानो तो उससे पदार्थ में अस्पष्टता कैसे कहलावेगी ? यदि अन्य की अस्पष्टता को लेकर अन्य किसी में अस्पष्टता मानी जावे तो अतिप्रसंग आवेगा ? [दूरवर्ती वृक्ष की अस्पष्टता को लेकर निकटवर्ती पदार्थ में भी अस्पष्टता मान लेनी पड़ेगी ] यदि अस्पष्टता पदार्थ का धर्म है ऐसा दूसरा पक्ष अंगीकार किया जाये तो उस पदार्थ की अस्पष्टता से व्याप्तिज्ञान में अस्पष्टता किस प्रकार पायेगी । यदि इस तरह अन्यके धर्मसे अन्यमें अस्पष्टता आ सकती है तो व्यधिकरण नामा दोष [ साध्यका अधिकरण भिन्न और हेतुका अधिकरण भिन्न हो उस हेतु को व्यधिकरण दोष युक्त कहते हैं ] से दूषित हेतु द्वारा साध्य सिद्धि माननी होगी ? इसतरह तो यह महल सफेद है क्योंकि कौवा काला है, इसप्रकार का व्यधिकरण हेतु भी महल में धवलता का गमक हो जावेगा, अत: पदार्थ की अस्पष्टता से ज्ञान में अस्पष्टता मानना युक्तियुक्त नहीं है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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