Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
अथ तेषां तत्साधने प्रत्यक्षविरोधः; सोन्यत्रापि समान इत्युक्तम् ।
ननु मार्जारादिचक्षुषोः प्रत्यक्षतः प्रतीयन्ते रश्मयः तत्कथं तद्विरोध: ? यदि नाम तत्र प्रतीयन्तेऽन्यत्र किमायातम् ? अन्यथा हेम्नि पीतत्वप्रतीतौ पटादौ सुवर्णत्वसिद्धिप्रसङ्गः । प्रत्यक्षबाधनमुभयत्रापि ।
fara, मार्जारादिचक्षुषोर्भासुररूपदर्शनादन्यत्रापि चक्षुषि तेजसत्वप्रसाधने गवादिलोचनयोः कृष्णत्वस्य नरनारीनिरीक्षणयोर्धावित्यस्य च प्रतीतेरविशेषेण पार्थिवत्वमाप्यत्वं वा साध्यताम् । कथं
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जैन – इस तरह प्रदृश्यता की युक्ति देकर चक्षु में जबरदस्ती किरणें सिद्ध की जायेंगी तो पृथिवी प्रादि में भी किरणों का सद्भाव मानना होगा, देखो - पृथिवी आदि पदार्थ किरणयुक्त हैं क्योंकि वे सत्त्व आदिरूप हैं, जैसे दीपक । इसीका खुलासा करते हैं - दीपक में तैजसत्वकी किरणपने के साथ जैसे व्याप्ति देखी जाती है वैसे सत्वादिके साथ भी व्याप्ति जाती है अतः ऐसा कह सकते हैं कि जहां सत्व है वहां किरणें भी हैं ? इसतरह पृथिवी आदि में किरणोंका सद्भाव सिद्ध होवेगा ।
नैयायिक – पृथिवी आदि में किरणों को सिद्ध करने में तो प्रत्यक्ष से विरोध प्राता है ?
जैन - तो ऐसा ही नेत्र में किरणों को सिद्ध करने में प्रत्यक्ष से विरोध
आता है ।
नैयायिक - बिलाव आदि के नयनों में तो किरणें प्रत्यक्ष से प्रतीत होती हैं तो फिर उनका प्रत्यक्ष से विरोध कैसे हो सकता है ?
जैन - यदि बिलाव श्रादि के नयनों में किरणें दिखती हैं तो इससे मनुष्यादि के नयनों में क्या आया ? यदि वहां हैं तो मनुष्यादि के नयनों में भी होना चाहिये, ऐसी बात तो नहीं । यदि अन्यत्र देखी गई बात दूसरी जगह भी सिद्ध की जाय तो सुवर्ण में प्रतीत हुआ पीलापन वस्त्र आदि में भी सुवर्णत्व की सिद्धि का प्रसंग कारक होगा । प्रत्यक्ष बाधा की बात कहो तो वह दोनों में समान ही है, अर्थात् सुवर्ण का पीलापन देख वस्त्र में कोई सुवर्णत्व की सिद्धि करे तो वह प्रत्यक्ष से बाधित है । वैसे ही बिलाव, उल्लू, शेर आदि की आंखों में किरणों को देखकर उन्हें मनुष्यों के नेत्रों में भी सिद्ध करो तो यह भी प्रत्यक्ष से बाधित है । यदि बिलाव उल्लू आदि के
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