Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 685
________________ ६३४ प्रमेयकमलमार्तण्डे सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष प्राप्नोतीत्याशङ्कापनोदार्थम्-'इन्द्रियानिन्द्रियनिमित्त देशतः' इत्याह । देशतो विशदं यत्तत्प्रयोजनं ज्ञानं तत्सांव्यवहारिक प्रत्यक्षमित्युच्यते नान्यदित्यनेन तत्स्वरूपम्, इन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तमित्यनेन पुनस्तदुत्पत्तिकारणं प्रकाशयति । तत्रेन्द्रियं द्रव्यभावेन्द्रियभेदाद्वधा । तत्र द्रव्येन्द्रियं गोलकादिपरिणाम विशेषपरिणतरूपरसगन्धस्पर्शवत्पुद्गलात्मकम्, पृथिव्यादीनामत्यन्तभिन्नजातीयत्वेन द्रव्यान्तरत्वासिद्धितस्तस्य प्रत्येक तदारब्धत्वासिद्ध: । द्रव्यान्तरत्वासिद्धिश्च तेषां विषयपरिच्छेदे प्रसाधयिष्यते । भावेन्द्रियं तु लब्ध्युप देश विशद होना यह इस सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष का स्वरूप कहा गया है । तथा यह इन्द्रियां एवं मन से होता है ऐसा जो कहा है वह उसकी उत्पत्ति का कारण प्रकट करने के लिये कहा है। इन्द्रियों के दो भेद हैं- एक द्रव्येन्द्रिय और दूसरी भावेन्द्रिय । नेत्र की पुतली या कान की शष्कुली आदि रूप परिणत एवं रूप, रस, गंध, स्पर्श युक्त जो पुद्गलों का स्कन्ध है वह द्रव्येन्द्रिय है। भावार्थ-द्रव्येन्द्रिय के भी दो भेद हैं-निवृत्ति और उपकरण पुनः- निवृत्ति के भी बाह्यनिवृत्ति और आभ्यन्तर निवृत्ति ऐसे दो भेद हैं । चक्षु आदि इन्द्रियों के आकाररूप जो आत्मा के कुछ प्रदेशों की रचना बनती है वह आभ्यन्तर निवृत्ति है, और उन्हीं स्थानों पर चक्षु रसना आदि का बाह्याकार पुद्गलों के स्कन्ध की रचना होना बाह्य निवृत्ति है । इनमें से प्राभ्यन्तर निवृत्ति प्रात्मप्रदेशरूप है, अत: वह पौद्गलिक नहीं है । उपकरण के भी दो भेद हैं-आभ्यन्तर उपकरण और बाह्य उपकरण, नेत्र में पुतली आदि की अन्दर की रचना होना आभ्यन्तर उपकरण है और पलकें आदिरूप बाह्य उपकरण हैं, मतलब -जो निवृत्ति का उपकार करे वह उपकरण कहलाता है । "उपक्रियते निवृत्तिः येन तत् उपकरणं" ऐसा उपकरण शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है। योग-नैयायिक वैशेषिकों ने इन्द्रियों में पृथक् २ पृथिवी आदि पदार्थ से उत्पन्न होने की कल्पना की है, अर्थात् पृथिवी द्रव्य से घ्राणेन्द्रिय की उत्पत्ति की कल्पना की है, जलद्रव्य से रसनेन्द्रिय की, अग्निद्रव्य से चक्षु इन्द्रिय की, वायुद्रव्य से स्पर्शनेन्द्रिय की, और आकाशद्रव्य से कर्णेन्द्रिय की उत्पत्ति की कल्पना की है। सो सब से पहिले यह बात है कि एक प्राकाश को छोड़कर पृथिवी आदि चारों पदार्थ एक ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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