Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 691
________________ ६४० प्रमेयकमलमार्तण्डे प्रतिनियतेन्द्रिय योग्यपुद्गलारब्धत्वं तु द्रव्येन्द्रियाणां प्रतिनियतभावेन्द्रियोपकरणभूतत्वान्यथानुपपतेर्घटते इति प्रेक्षादक्षैः प्रतिपत्तव्यम् । * इति श्री प्रमेयकमल मार्तण्डस्य प्रथम खण्ड: समाप्त: * हा । प्रस्तुत प्रथम खंडमें परीक्षामुख के कुल १८ सूत्र आये हैं। संस्कृत टीका का तृतीयांश [ ४००० श्लोक प्रमाण ] एवं भाषानुवादका साधिक तृतीयांश [ करीब ६००० श्लोक प्रमाण] अन्तनिहित हुआ है। इसमें प्रज्ञान एवं प्रमादवश कुछ स्खलन हमा हो उसका विद्वज्जन संशोधन करें। श्री प्रभाचन्द्राचार्य ने प्रमाण के विषयमें जो विविध मान्यतायें दी हैं अर्थात् प्रमाण का लक्षण क्या है, प्रमाण में प्रमाणता किससे आती है, प्रमाण की कितनी संख्या है ? इत्यादि विषयों पर बहुत ही अधिक विशद विवेचन किया है उन्होंने भारत में प्रचलित सांख्य, नैयायिक, वैशेषिक, मीमांसक, बौद्ध, चार्वाक, वेदांत आदि दर्शनोंका प्रमाणके बारेमें जो अभिप्राय है अर्थात् प्रमाणके लक्षण में मतभेद है उन सबके प्रमाण लक्षणोंका युक्ति पूर्ण पद्धतिसे निरसन किया है। और जिनमत प्रणीत प्रमाणका लक्षण निर्दोष अखण्डित सिद्ध किया है । प्रमेयकमलमार्तण्ड के तृतीयांश के राष्ट्रभाषानुवाद स्वरूप इस प्रथम भागमें प्रथम ही मंगलादि संबंधी चर्चा है, फिर प्रमाण का लक्षण करके मतांतरके कारक साकल्यवाद सन्निकर्षवाद, इन्द्रियवृत्तिवाद, ज्ञातृव्यापारवाद, इत्यादि करीब ३२ प्रकरणों का समावेश है। ___ इसप्रकार विक्षेपणी कथा स्वरूप इस न्याय ग्रन्थका अध्ययन करके प्रात्म भावों में स्थित विविध मिथ्याभिनिवेशोंका परिहार कर निज सम्यग्दर्शन को परिशुद्ध बनना चाहिये। * श्री प्रमेयकमलमाण्ड का प्रथम भाग समाप्त * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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