Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 665
________________ ६१४ प्रमेयकमलमार्तण्डे दृश्यते तत्तथैव कल्प्यते, रात्रौ तु चाक्षुषमेव, अतस्तदेव तत्कारणं कल्प्यते । ननु कि मनुष्येषु नायनरश्मीनां दर्शनमस्ति ? अथानुमेयास्ते; तहि रात्रौ सौर्यरश्मयोप्यनुमेयाः सन्तु । न च रात्री तत्सद्भावे नक्तञ्चराणामिव मनुष्याणामपि रूपदर्शनप्रसङ्गः; विचित्रशक्तित्त्वाद्भावानाम् । कथमन्यथोलू कादयो दिवा न पश्यन्ति ? यथा चात्रालोकः प्रतिबन्धकः, तथान्यत्र तमः । ततो यथानुपलम्भान्न सन्ति रात्रौ भास्करकरास्तथान्यदा नायनकरा इति । एतेन 'दूरस्थितकुड्यादिप्रतिफलितानां प्रदीपरश्मीनामन्तराले सतामप्यनुपलम्भसम्भवात् नेयायिक - जैसा देखा जाता है वैसा माना है, दिन में हम लोगों को बाह्यपदार्थ के ज्ञान का कारण नेत्र संबंधी तेज और सूर्य संबंधी तेज दोनों ही होते हैं अतः वे उसी तरह से माने जाते हैं, रात्रि में जो बिलाव आदि प्राणी देखने का कार्य करते हैं उसमें तो चक्षु किरणें मात्र कारण है, अतः रात्रिमें उसी को कल्पना करते हैं सूर्य किरणों की नहीं। जैन-क्या आपको मनुष्यों में नेत्र संबंधी किरणें दिखाई देती हैं ? नैयायिक-किरणे प्रत्यक्ष से तो दिखाई नहीं देती पर अनुमान से उनकी सिद्धि होती है। जैन-तो फिर रात्रि में सूर्यकिरणों की भी अनुमान से सिद्धि कर लेनी चाहिये ? यदि तुम कहो कि रात्रि में सूर्यकिरणें अनुमेय मानी जावें ( उनका सद्भाव स्वीकार किया जावे ) तो नक्तचर बिलाव उल्लू आदि के समान हम मनुष्यों को भी पदार्थ का रूप दिखाई देना चाहिये था ? सो उसका जवाब यह है कि पदार्थों की शक्तियां विचित्र हुआ करती हैं, इसीलिये रात्रि में सूर्यकिरणें रहती हुईं भी नक्तंचरों को तो ज्ञानका कारण होती हैं मनुष्यों को नहीं । यदि पदार्थों में विचित्र शक्तियां नहीं हो तो दिन में उल्लू आदि को क्यों नहीं दिखता ? जिस प्रकार उल्लू आदि को दिन में देखने में बाधक प्रकाश है, उसी प्रकार रात्रि में मनुष्यों को देखने में बाधक अंधकार है । इस सब कथन से यह निश्चित हुआ कि जिस प्रकार उपलब्धि नहीं होने से रात्रि में सूर्य किरण नहीं है उसी प्रकार नेत्र की किरणें दिनरात दोनों में भी उपलब्ध नहीं होने से नहीं हैं ऐसा ही मानना चाहिये । यहां नैयायिक ऐसा कहना चाहें कि दूरवर्ती दिवाल आदि में प्रतिबिंबित हुई दीपक की किरणें दीपक से लेकर दिवाल तक के अन्तराल में रहती तो हैं फिर भी वे वहां उपलब्ध नहीं होती अतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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