Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
स्तीत्यनेन हेतोर्व्यभिचारः । 'करणत्वे सति' इति विशेषणेप्यालोकार्थसन्निकरण चक्षुरूपयोः संयुक्तसमवायसम्बन्धेन चाने कान्तः । 'द्रव्यत्वे करणत्वे च सति तत्प्रकाशकत्वात्' इति विशेषणेपि चन्द्रादिनानेकान्तः।
किञ्च, द्रव्यं रूपप्रकाशकं भासुररूपम्, प्रभासुररूपं वा ? प्रथमपक्षे उष्णोदक संसृष्मपि तत् तत्प्रकाशकं स्यात् । अनुभूतरूपत्वान्ने ति चेत्, नायनरश्मीनामप्यत एव तन्माभूत् । तथा दृष्टत्वादि
विशेषार्थ- नैयायिक सन्निकर्ष और संयुक्त समवायादि को ज्ञान का कारण मानते हैं । ये सन्निकर्षप्रमाणवादी हैं, सो जो ज्ञान का करण हो वह तैजस हो ऐसा तो रहा नहीं, सन्निकर्ष और संयुक्त समवाय संबंध ये ज्ञान में करण रूप तो पड़ते हैं पर वे तैजसरूप नहीं हैं । अत: “करणत्वे सति रूप प्रकाशकत्वात्" यह सविशेषण हेतु व्यभिचरित हो जाता है ।
नैयायिक-सविशेषण हेतु को जो आपने व्यभिचरित प्रकट किया है सो उस व्यभिचार का निवारण "द्रव्यत्वे करणत्वे च सति तैजसत्वात्" इतना और विशेषण लगाकर हो जाता है, क्योंकि सन्निकर्षादिक गुण हैं, द्रव्य नहीं, अतः चक्ष तेजस है, क्योंकि करण और द्रव्य होता हुआ वह रूप आदि में से एक रूप का ही प्रकाशन करता है, इस तरह से सुधारा गया यह तैजसत्व हेतु सन्निकर्ष के साथ व्यभिचारी नहीं होगा।
जैन-सो ऐसा मानना भी युक्त नहीं है, क्योंकि इस मान्यता के अनुसार हेतु चन्द्र आदि के साथ अनैकान्तिक हो जाता है, चन्द्रमा में करणत्व और द्रव्यत्व दोनों विशेषण हैं और वह रूपादि में से एक रूप मात्र का ही प्रकाशन करता है फिर भी चन्द्र तैजस नहीं है, अत: जो करण एवं द्रव्य होकर रूप का प्रकाशन करने वाला हो वह तैजस ही होगा ऐसा कहा गया हेतु भी अनैकान्तिक दोष युक्त ठहरता है।
किञ्च - आप नैयायिक का कहना है कि तेजोद्रव्य रूप को प्रकाशित करता है, सो कौनसा तेजोद्रव्य रूप को प्रकाशित करता है ? भासुररूपवाला तेजोद्रव्य कि प्रभासुररूपवाला तेजोद्रव्य ? प्रथमपक्ष-भासुररूपवाला तेजोद्रव्य रूप को प्रकाशित करता है ऐसा कहो तो गर्म जल में मिला हुआ तेजोद्रव्य भी रूप को प्रकाशित करने वाला होना चाहिये ?
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