Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
त्रापि 'इन्द्रियत्वात्' इति हेतुः केन वार्येत ? ततो मनसि तत्साधने प्रमाणबाधनमन्यत्रापि समानम् । चक्षुश्चात्र धमित्वेनोपात्तं गोलकस्वभावम्, रश्मिरूपं वा? तत्राद्यविकल्पे प्रत्यक्षबाधा; अर्थदेशपरिहारेण शरीरप्रदेशे एवास्योपलम्भात्. अन्यथा तद्रहितत्वेन नयनपक्ष्म प्रदेशस्योपलम्भः स्यात् । अथ रश्मिरूपं चक्षुः; तहि धर्मिणोऽसिद्धिः । न खलु रश्मयः प्रत्यक्षतः प्रतीयन्ते. अर्थवत्तत्र तत्स्वरूपाप्रतिभासनात्, अन्यथा विप्रतिपत्त्यभावः स्यात् । न खलु नीले नीलतयानुभूयमाने कश्चिद्विप्रतिपद्यते ।
मनके इस संयुक्त समवाय आदि संबंध को हम संबंध रूप मानते ही नहीं हैं ?
जैन -- तो फिर नेत्रादिका भी रूपादि पदार्थके साथ संयुक्तादि संबंध नहीं मानना चाहिये ? क्योंकि वह भी संबंध संबंधरूप है।
अतः इन्द्रियपना समान होते हुए भी जैसे मन अप्राप्त होकर पदार्थ को जानता है वैसे ही बाह्येन्द्रियपना समान होते हुए भी चक्षु इन्द्रिय अप्राप्त होकर पदार्थ को जानती है, ऐसा मानना चाहिये ?
नौयियाक-चक्षुमें "बाह्येन्द्रि यत्वात्" यह हेतु पाया जाता है अत: उसमें हम अप्राप्तार्थप्रकाशकता नहीं मानते हैं ?
जैन-यह बात भी उचित नहीं है, क्योंकि जब इन्द्रियत्वात् ऐसा हेतु दिया जायगा तब मन में भी प्राप्तार्थप्रकाशता कैसे रोकी जा सकेगी, अर्थात् - "मनः प्राप्तार्थप्रकाशकं इन्द्रियत्वात् त्वतिन्द्रियवत्" मन प्राप्तार्थप्रकाशक है क्योंकि वह इन्द्रिय है, जैसे स्पर्शनेन्द्रिय है, इस अनुमान में इन्द्रियत्त्व हेतु दिया है वह स्पर्शन इन्द्रिय की तरह मन को भी प्राप्यकारी सिद्ध कर देगा, तो फिर इस युक्तियुक्त बात को कैसे रोका जा सकता है । यदि कहा जाय कि मन में प्राप्तार्थ प्रकाशता प्रमाण से बाधित होती है ? तो नेत्र में भी प्राप्तार्थप्रकाशनता प्रत्यक्षप्रमाण से बाधित होती है, चक्षु और मन में समान ही बात है । नैयायिक ने जो प्राप्तार्थप्रकाशतारूप साध्य में चक्षुको पक्ष बनाया है सो किस चक्षु को पक्ष बनाया है ? क्या गोलक स्वभाववाली चक्षु को या किरणरूप चक्ष को ? यदि गोलकरूप चक्ष को पक्ष बनाया जाता है तो पक्ष में प्रत्यक्ष से बाधा दिखाई दे रही है, क्योंकि गोलक चक्ष तो अपने स्थान पर ही स्थित रहती है, यदि वह पदार्थ को प्राप्त करने जाती तो चक्ष के प्रदेश-पलकें ग्रादि गोलक (पुतली) रहित प्रतीत होने चाहिये । यदि कहा जावे कि किरणरूप चक्ष को पक्ष बनाया है तो वह पक्ष (धर्मी) अभी प्रसिद्ध ही है, क्योंकि नेत्र किरणें प्रत्यक्ष से साक्षातु दिखायी
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