Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे अनेनाऽकस्माद्ध मदर्शनात् 'वह्निरत्र' इति ज्ञानम्, 'यावान् कश्चिद् भावः कृतको वा स सर्वः क्षणिकः, यावान् कश्चिद्ध मवान्प्रदेशः सोग्निमान्' इत्यादि व्याप्तिज्ञानं चास्पष्ट मपि प्रत्यक्षमाचक्षारणः प्रत्याख्यातः; अनुमानस्यापि प्रत्यक्षताप्रसङ्गात् प्रत्यक्षमेवैकं प्रमाणं स्यात् ।
- किञ्च, अकस्माद्ध मदर्शनाद्वह्निरश्रेत्यादिज्ञाने सामान्यं वा प्रतिभासेत, विशेषो वा ? यदि सामान्यम् ; न तहि प्रत्यक्षम्, तस्य तद्विषयत्वानभ्युपगमात् । अभ्युपगमे वा 'प्रमाणढ विध्यं प्रमेयद्व विध्यात्' इत्यस्य व्याघातः, सविकल्पकत्वप्रसंगश्च । विशेषविषयत्वे ततः प्रवर्त्तमानस्यात्र सन्देहो न
इस प्रकार की मान्यता में तो एक प्रत्यक्ष प्रमाण सिद्ध होता है, फिर प्रत्यक्ष और अनुमान ऐसे दो प्रमाण बौद्ध ने मान्य किये हैं वे संगत नहीं बैठते ।
किञ्च-जब अकस्मात् धूम के दर्शन से ऐसा ज्ञान होता है कि यहां पर अग्नि है तब इस ज्ञान में सामान्य अग्नि प्रतिभासित होती है ? कि विशेष अग्नि प्रतिभासित होती है ? यदि सामान्य झलकता है तब तो उसको प्रत्यक्ष कह नहीं सकेंगे, क्योंकि आपके यहां प्रत्यक्ष का विषय सामान्य नहीं माना है । यदि ऐसा मानो तो प्रमेयद्वैविध्य से प्रमाणद्वैविध्य मानने का सिद्धान्त गलत ठहरता है । अर्थात् पहिले बौद्ध ने कहा था कि प्रमाण दो प्रकार का इसलिये मानना पड़ता है कि सामान्य
और विशेष के भेद से प्रमेय दो प्रकार का है। सो यहां यदि प्रत्यक्ष का विषय सामान्य भी मान लिया जाय तो विशेष तो प्रत्यक्षज्ञान का विषय पहिले से ही मान्य कर लिया गया है और अब उसका विषय सामान्य भी मान लिया तो इस तरह दोनों प्रमेयों को जब प्रत्यक्ष ने ही जान लिया तो प्रमाण की संख्या दो न होकर एक ही रह जायगी । तथा प्रत्यक्ष यदि सामान्य को विषय करेगा तो वह निर्विकल्पक न रहकर सविकल्पक बन जायगा। जो आपको इष्ट नहीं है । दूसरा पक्ष-अकस्मात् धूमदर्शन से होनेवाला अग्निका ज्ञान विशेष को ग्रहण करता है ऐसा माना जाय तो जब धूम से अग्निका ज्ञान हुअा और तब वह यदि विशेषको (अग्नि संबंधी) जानता है तो उसको जानने वाले पुरुष को ऐसा संशय ही नहीं होना चाहिये कि यहां जो अग्नि है वह घास की है अथवा पत्तों की है ? जैसे कि निकट में जलती हुई अग्नि में संदेह नहीं हुअा करता। कहीं पर भी निकट की अग्निको देखनेवाले पुरुषको संदेह होता हुआ नहीं देखा है, यदि निकटवर्ती अग्नि आदि पदार्थमें संदेह की संभावना है तो शब्द या लिंगसे अग्नि आदि को जानते हुए पुरुषको भी संदेहकी संभावना होगी ?
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